परमेश्वर ने एक सुन्दर वाटिका बनायीं थी, जिसमे प्रार्थना की नदियां बहती थी। जहां दिल में परमेश्वर के लिए धन्यवाद खिले फूलों की सुगंध के समान निकलता था। जहां आराधना सुबह की ओस के समान उतरती रहती थी। उस वाटिका में परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध स्वाभाविक व् अन्य सब बातों में सबसे ज़्यादा ज़रूरी था। उस वाटिका के प्रेम व् भक्तिमय वातावरण में हम रहते, चलते फिरते व् परमेश्वर पिता से बातें करते थे।
यही वो सम्बन्ध था जिसके लिए सिरजनहार ने हमें बनाया था। और यद्यपि इसमें वह सब कुछ था जिसकी हमें कभी भी आवश्यकता होगी, हमने इसे जाने दिया। हमने वो प्रेम छोड़ दिया और परमेश्वर के प्रेम पर नहीं बल्कि अन्य बातों पर ध्यान दिया। हम बस जिए जा रहे हैं ये एहसास किये बिन कि हमारा आत्मिक जीवन शून्य है । जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। आत्मिक जीवन न होने के कारण हम दिल की गहरायी में एक दर्द भरे खालीपन का अनुभव करते हैं। हम अपने रोज़ के कामों में, अपने जीवन में, नौकरी, कारोबार, स्कूल, कॉलेज और अन्य कार्यों में उलझ गए हैं।