ये है हिन्दू वेदों की वास्तविकता – वेदों के झूठ का पर्दाफाश

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आपने बहुत बार हिन्दू वादियों को कहते सुना होगा कि उनके वेद हज़ारों लाखों साल पुराने हैं लेकिन वे इसका कोई वैज्ञानिक या भूगोलिक सबूत नहीं दिखा पाते क्योंकि इसका कोई सबूत है नहीं। इस लेख में हम इन वेदो में लेखन का समय इनकी विश्वसनीयता और इनके अंदर वास्तव में क्या लिखा है ये सब आपको बताएँगे और ये साबित करेंगे कि ये वेद न तो पुराने हैं और न ही इनमें कोई ज्ञान की बात हैं जिस से मानव जीवन और चरित्र का बेहतर विकास हो सके. एक प्रोपोगंडा के तहत इन वेदों के विषय में झूठ फैलाया गया ताकि जान साधारण का भ्रम बना रहे और फायदा उठाने वालों का नुक्सान न हो।

ब्राह्मण प्रचार करते हैं वेद 5000 साल पुराने है लेकिन इनके पास इसका कोई प्रमाण नहीं है। यूनेस्को को जो मानव स्क्रिप्ट सौपे गए हैं उसमें यह बताया गया है कि यह वेद 1464 AD हैं मतलब 14 शताब्दी में लिखे गए थे जब कागज का आविष्कार हो गया था वो भी बौद्ध शिक्षाओं को इकट्ठा कर उसमें कुछ मिलावट कर सारे वेद और हिंदुओं के धर्म ग्रंथ की रचना की गई, आप खुद यूनेस्को के वेबसाइट पर जाकर देख सकते हैं।

1779 से पहले वेद नामक किसी भी पुस्तक का कोई अस्तित्व नही था वेद श्रुति ग्रंथ हैं इसलिए इसे सुन कर याद किया जाता था और फिर अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जाता था भारत मे छपाई का इतिहास 1556 से शुरू होता है लेकिन कागज पर लेख या पुस्तकों की छपाई 1749 से 1822 के बीच ही शुरू हुई 1822 के बाद छपाई का दौर शुरू हुआ इस तरह आपकी ये धारणा खारिज हो जाती है की मनुष्य की उत्पत्ति के समय वेद नामक पुस्तक उसे किसी ईश्वर ने प्रदान की वेदों में क्या क्या वर्णित है और हमारे पूर्वज किन वैज्ञानिक चीजों का इस्तेमाल करते थे ये भी बता देते तो अच्छा होता तीर भाला गदा मंत्र श्राप और बच्चों के मनोरंजन की कहानियां इनके अलावा और कुछ हो वेदों में तो खंगाल लीजियेगा।

असल मे वेदों में विज्ञान का प्रोपगैंडा दयानन्द सरस्वती ने आरम्भ किया जब पूरी दुनिया विज्ञान के सहारे आगे बढ़ रही थी आधुनिक विज्ञान की शुरुआत हो चुकी थी लोग पुराणों और मिथकों की काल्पनिक दुनिया से बाहर निकल कर नई दुनिया मे विज्ञान के साथ जीने की खुशफहमी पाल रहे थे पूरी दुनिया मे धर्म की बुनियादें हिलाई जा रही थी मान्यताये ध्वस्त हो रही परम्पराओ को तोड़ा जा रहा था ऐसे दौर में धार्मिक गिरोहों के लिए विज्ञान की इस आंधी से धर्म को किसी भी तरह बचा लेने की चुनौती थी वर्ना सब खत्मउन्नीसवीं सदी असल मे विज्ञान और धर्म के सीधे टकराव का दौर था आप गौर करेंगे तो इसी दौर में इस्लाम भी छटपटाया हुआ था गुलाम अहमद कादियानी अहमद रजा बरेलवी जैसे लोग इस्लाम की नई कवायदें जोड़ने में लगे हुए थे ऐसे में भारतीय पुरोहितों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि धर्म को कैसे बचाएं विज्ञान की इस आंधी में क्या बचाया जा सकता है उन्होंने मूलशंकर तिवारी उर्फ दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में आर्यसमाज के नाम पर एक अलग धड़ा तैयार किया जिसमें पुराणों मिथकों और मूर्तिपूजा की मान्यताओं को झूठा करार दिया गया लेकिन बड़ी चतुराई से वेदों को बचा लिया गया ताकि बाद में वेदों के नाम पर धार्मिक प्रोपगेंडे को फिर से स्थापित किया जा सके भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है इससे जरूरी सवाल ये होना चाहिए कि भारत ने भारत को क्या दिया है आज देश मे भयंकर विदेशी कर्ज के अलावा चारों ओर जातिवाद गरीबी अशिक्षा भय भूख भ्रस्टाचार सामाजिक असमानता आर्थिक असमानता घृणा और अराजकता का माहौल फैला हुआ है कहाँ है तुम्हारा वेदों का महान ज्ञान या उस समय ये ज्ञान कहाँ था जब देश बार बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटा जाता रहा।

यदि इन वेदों को खुद पढ़कर वास्तविकता को जानना चाहते हैं तो दिए गए लिंक पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं.

चारों वेद की कोई 22443 ऋचाओं में से एक भी शब्द ऐसा नहीं है जो ट, ठ, ड, ढ से आरंभ होता है, जबकि प्राकृत भाषाओं में ट, ठ, ड, ढ से आरंभ होनेवाले शब्दों की संख्या सैकड़ों है। यदि वैदिक भाषा ही प्राकृत भाषाओं का भी स्रोत है तो फिर वैदिक शब्दावली से एकदम अलग ट, ठ, ड, ढ से आरंभ होनेवाले इतने सारे शब्द प्राकृत भाषाओं में कहाँ से आए हैं ? 
टोकरी, टेढ़ा, ठठेरा, ठिठोली, डमरू, ढोलक आदि शब्द पूरे वेद में ट, ठ, ड, ढ से शुरू होनेवाले एक भी शब्द नहीं हैं, जबकि पालि/ प्राकृत भाषा में हैं, तो बताइए कहाँ से आए।
भयानक पोल खोल है, ये वेदों पुराणों की  भाषाइ उम्र के संबंध में। इससे ये सिद्ध होता है ये वेद पूरे काल्पनिक हैं।  यदि संस्कृत भाषा देवो की भाषा थी भारत की प्राचीन भाषा थी तो जन साधरण में यानी आम जनता में बोली क्यो नही गई। इसका मतलब ये है कि कुछ एक वर्ग लिखने के लिए अलग और आम बोल चाल के लिए अलग भाषा का इस्तेमाल करता था। और दूसरी भषा यानी संस्कृत भाषा मे वो गोपनीय दस्तावेज लिखता था तकि आम जनता उसे पढ़ न सके और उनके अर्थ को आसानी से तोडा मरोड़ा जा सके।

अब ये भी जान लीजिये की वेदों में क्या है?

वेदों में मुख्यत देवता वर्णन, ब्रह्मांड, ज्योतिष, कर्मकांड और कुछ औषधि विज्ञान है। वेद 4 हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्व वेद और अथर्ववेद का स्थापत्य वेद ये क्रमश: चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।


ऋग्वेद : ऋक अर्थात स्थिति और ज्ञान। इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। उनके सुन्दर स्वरूप और शराब के प्रति प्रेम को भी दर्शाया गया है।


यजुर्वेद : यजु अर्थात गतिशील आकाश एवं कर्म। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। तत्वज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान। ब्रम्हांड, आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान। इस वेद की 2 शाखाएं हैं- शुक्ल और कृष्ण। इन्हीं यज्ञों से ब्राह्मणों ने आक्रमणकारियों को भगाने की कोशिश की। हालांकि उल्टा देश का सर्वनाश करवा दिया।


सामवेद : साम का अर्थ रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें सविता, अग्नि और इन्द्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है। इसी से शास्त्रीय संगीत और नृत्य का जिक्र भी मिलता है। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें संगीत के विज्ञान और मनोविज्ञान का वर्णन भी मिलता है। 


अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी-बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि का जिक्र है। इसमें भारतीय परंपरा और ज्योतिष का ज्ञान भी मिलता है। कुछ औषधि विज्ञान के अलावा इसमें भी कुछ विशेष नहीं है बल्कि ज्योतिष इत्यादि अंधविश्वासों का घोल है। किसी भी वेद में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस से विज्ञान ने कुछ प्राप्त किया हो या कोई और सहायता मिली हो।

हिन्दू वेद खुद ही हिन्दू धर्म के देवी देवताओं का खंडन करते हैं. एक तरफ तो ये दावा करते हैं इनके देवी देवता सच्चे और सही हैं दूसरी तरफ खुद इनके वेद ही इनके ईश्वरों को नकारते हैं यानि इनकी सारी आस्था आधारहीन है और केवल मान्यताओं और कल्पनाओं पर आधारित है.

चारों वेदों के 20589 मंत्रों में कोई ऐसा मंत्र नहीं है जो मूर्ति पूजा का पक्षधर हो।

  • अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते।
  • ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता:।

– ( यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 )
अर्थ – जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं । वह लोग घोर अंधकार (दुख) को प्राप्त होते हैं

  • न तस्य प्रतिमाsअस्ति यस्य नाम महद्यस: ।– (यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 3 )

अर्थात- उस ईश्वर की कोई मूर्ति, प्रतिमा नहीं जिसका महान यश है

  • अधमा प्रतिमा पूजा ।

अर्थात् – मूर्ति-पूजा सबसे निकृष्ट है ।

  • यष्यात्म बुद्धि कुणपेत्रिधातुके ।

स्वधि … स: एव गोखर: ॥– ( ब्रह्मवैवर्त्त )
अर्थात् – जो लोग धातु , पत्थर , मिट्टी आदि की मूर्तियों में परमात्मा को पाने का विश्वास तथा जल वाले स्थानों को तीर्थ समझते हैं । वे सभी मनुष्यों में बैलों का चारा ढोने वाले गधे के समान हैं ।

जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है । वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है । ( शतपथ ब्राह्मण 14/4/2/22 )

यजुर्वेद अध्याय ३३ श्लोक नबंर ४३
पृथ्वी ठहरी हुई है और सूर्य पृथ्वी के चारों और चक्कर लगाकर पृथ्वी के अंधकार को दूर करता हैं ।

यजुर्वेद वेद २/१२/१२
लिखा है धरती चपटी है ।

ये केवल कुछ ही उदाहरण हैं इसके अतिरिक्त यदि कोई वास्तव में सच जानना चाहे और खुद इन वेदों को पढ़कर और अनेकों ऐसे सबूत पा सकता है जिनसे उसे पता चल जायेगा की इनमें कुछ भी सत्यता नहीं है. यदि इस लेख को पढ़ने वाला वास्तव में सत्य की खोज कर रहा है और सच्चे परमेश्वर को जानना चाहता है तो वह बाइबिल पढ़े. बाइबिल कहती है ‘तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।

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