शिवलिंग को शिश्न कह दें तो बहुत से धार्मिक लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं और वो कहते हैं कि लिंग का मतलब चिन्ह है और यह ब्रह्माण्ड का प्रतीक है न कि मूत्रेन्द्रिय का! ग्रन्थ ही यह प्रमाणित करते हैं कि यह शिवलिंग वस्तुतः शिश्न ही है! अब सुनिए शास्त्रों में वर्णित शिवलिंग और उसके पूजन की कथा।
ठाकुर प्रेस, शिव पुराण, चतुर्थ कोटि, रूद्र संहिता, अध्याय 12, पृष्ठ 511 से 513
दारू नाम का एक वन था, वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं, महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये। यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं, परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं। उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये, महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -“हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो?”
यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा, तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि – “तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े” उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश, पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया, यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ। इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये, उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब – ब्रह्मा जी ने कहा – आप लोग शिव के पास जाइये।
शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले – हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता । यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया, तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया। तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग (Shivling) व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ।
प्रतिसर्गपर्व-3 खण्ड-4 अध्याय-17 श्लोक-67-82 तक
इसलिये महादेव का लिंग, विष्णु के चरण और ब्रह्मा के सिर हमेशा उपहास का कारण बनेगे! और तुम तीनों ने मेरे ऊपर कुदृष्टि डाली है, अतः तुम तीनों ही मेरे पुत्र बनोगे! अनुसुइया के श्राप से शिव के लिंग (Shivling) की पूजा होती है, और उसका उपहास भी होता है! बाद मे शिव ने दुर्वासा, विष्णु ने दत्तात्रेय और ब्रह्मा के चन्द्र के रूप मे अनुसुइया के गर्भ से जन्म भी लिया।”
श्रीमद्भागवत के प्रथम खंड के आठवें स्कंद का बारहवां अध्याय
फिर उस मोहिनी के पीछे भागने लगे, जब शिव ने मोहिनीरुपी नारी को पकड़ा तो शिव की काम शक्ति बहुत तीव्र थी, शायद कामदेव भी उनके सामने ना ठहरे, लेकिन जैसे ही मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने अपने को शिव से छुड़ाया तो शिव ने उन्हें फिर पकड़ने की चेष्टा की। इसी क्रम में भगवान शिव का वीर्य धरती पर गिर गया और जहां-जहां उनका वीर्य गिरा, वहां-वहाँ सोने-चाँदी की खान बन गई। इस तरह सोने-चाँदी में भी शिवजी का अंश है।