कृष्ण का प्रेम-प्रसंग व सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ
कृष्ण का प्रेम-प्रसंग व सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ
वैदिक युग तक इन्द्र व अग्नि का वर्चस्व रहा। राम और कृष्ण तब तक अवतरित नहीं हुए थे। पौराणिक युग में वाल्मीकि ने रामायण लिखकर राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में स्थापित किया।
महर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत लिखकर कृष्ण को ईश्वर के अवतार (सोलह कलापूर्ण) के रूप में स्थापित किया। तब से लेकर आज तक राम और कृष्ण छाए हुए हैं। वैदिक युग के इन्द्र व अग्नि हाशिए पर चले गए।
कृष्ण-लीला, राम-लीला विगत सैकड़ों वर्षों से सारे देश में, विशेष कर उत्तर भारत में अत्यन्त लोकप्रिय रही है। श्रीमद्धागवत के अनुसार, श्रीकृष्ण की आठ ब्याहता पत्नियाँ थीं जिन्हें रानी, पटरानी कहा जाता रहा किन्तु राधा के साथ उनकी प्रेमगाथा से सभी परिचित हैं। उनकी प्रेमगाथा इस कदर परवान चढ़ी कि कृष्ण का पर्याय बन गई और राधा-कृष्ण के नाम से उनकी न सिर्फ पहचान बनी बल्कि पूजा-अर्चना तक होने लगी। इनका प्रेम अत्यन्त प्रगाढ़ था, यह तो सभी स्वीकार करते हैं, किन्तु उस प्रेम को कोई संज्ञा देने के नाम से विद्वानों को हिचकिचाहट होती है।
कृष्ण की बाँसुरी की धुन पर राधा सब कुछ छोड़-छाड़कर उनके पार्श्व में आ खड़ी होती हैं और प्रेम में इस कदर मगन हो जाती कि उन्हें दीन-दुनिया की खबर नहीं रहती।
कृष्ण के मथुरा छोड़कर द्वारका के लिए प्रस्थान करने के बाद राधा की विरह-वेदना को लेकर काफी कुछ लिखा गया। राधा-कृष्ण की पहली प्रेमिका थीं जो रिश्ते में उनकी मामी लगती थीं और उम्र में उनसे बड़ी थीं। किन्तु वह उनकी विधिवत् पत्नी नहीं थीं।
मथुरा से द्वारका की यात्रा के दौरान कृष्ण ने विभिन्न राज्यों में प्रवेश किया और स्वयं द्वारा तथा जबरन भी, आठ रानियों से विवाह रचाया।
कोसल देश के राजा नग्नजित की प्रतिज्ञा थी कि जो उसके सात साँड़ों को एक साथ नाथेगा, उससे अपनी पुत्री राजकुमारी सत्या का विवाह करेगा। कई राजा आए, असफल होकर लौट गए। अन्तत: श्रीकृष्ण ने यह कारनामा किया और उनका विवाह राजकुमारी से सम्पन्न हुआ।
मार्ग में यमुना के किनारे सूर्यदेव की परमसुन्दरी कन्या कालिंदी को तप करते देख श्रीकृष्ण मोहग्रस्त हो गए और उससे विवाह रचाया।
अवन्त देश के राजा विन्द अपनी बहन मित्रविन्दा का स्वयंवर रचा रहे थे, जिसमें कई देशों के राजा पधारे हुए थे। भरी सभा में कृष्ण ने मित्रविन्दा का हाथ थामा और सबके देखते-देखते उसे ले गए।
इसी प्रकार भद्रदेश के राजा की सुन्दर कन्या लक्ष्मणा का स्वयंवर हो रहा था, कृष्ण ने उसका भी हाथ पकड़ा और ले गए।
कैकय देश के शक्तिशाली राजा की कन्या भद्रा का पाणिग्रहण उसके पिता ने श्रीकृष्ण के साथ कराया।
इस प्रकार श्रीकृष्ण की आठ रानियाँ थीं, जिनमें पटरानी थीं रुक्मणी।
दैत्य भौमासुर के महल में सोलह हजार राजकुमारियाँ कैद थीं। युद्ध में भौमासुर की हत्या कर कृष्ण ने उन बंदी राजकुमारियों को मुक्त कराया किन्तु जब उनसे किसी ने विवाह नहीं करना चाहा तो स्वयं श्रीकृष्ण विवाह कर उन्हें अपने महल में ले गए।
कहते हैं, सोलह हजार आठ रानियों के साथ एक साथ वह रतिक्रिया करते थे।