अध्याय की झलक:
यह अध्याय परमेश्वर के न्याय का और भी भयानक चित्र प्रस्तुत करता है।
पाँचवीं तुरही में अधोलोक (Abyss) से भयावह टिड्डियों का दल निकलता है, और छठी तुरही में घुड़सवार सेनाएँ पृथ्वी के एक तिहाई मनुष्यों का नाश करती हैं।
यह अध्याय दिखाता है कि मनुष्य कितना भी पीड़ा झेले, फिर भी कई लोग मन नहीं फिराते।
1-12 पद: पाँचवीं तुरही – अधोलोक से टिड्डियों का आतंक
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: परमेश्वर के बिना जीवन अंधकार और पीड़ा से भर जाता है।
13-19 पद: छठी तुरही – घातक घुड़सवारों की सेना
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: जब मानवता पश्चाताप नहीं करती, तो न्याय और भी कठोर होता जाता है।
20-21 पद: फिर भी मन फिराया नहीं
प्रतीक:
सीख: दुख और विपत्ति भी यदि पश्चाताप नहीं लाती, तो इसका परिणाम और भी भयानक हो सकता है।
इस अध्याय से क्या सिखें?
परमेश्वर का न्याय गहरा और निश्चित है।
दुष्ट आत्माएँ भी परमेश्वर की अनुमति के बिना कार्य नहीं कर सकतीं।
पश्चाताप करने का समय सीमित है — अवसर रहते प्रभु की ओर लौटना चाहिए।
कठोर हृदय विनाश को बुलाता है।
याद रखने योग्य वचन:
“और उन लोगों ने न तो अपने हाथों के कामों से मन फिराया, न दुष्टात्माओं की, न मूर्तियों की उपासना छोड़ दी…”
(प्रकाशित वाक्य 9:20)

