1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)
यशायाह की पुस्तक बाइबल के पुराने नियम की सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणी संबंधी पुस्तकों में से एक है। इसमें इस्राएल और अन्य राष्ट्रों के लिए परमेश्वर के न्याय, करुणा और उद्धार का संदेश दिया गया है। यह मसीहा के आगमन की भी भविष्यवाणी करती है, जो संसार का उद्धारकर्ता होगा।
लेखक:
भविष्यवक्ता यशायाह (यशायाह 1:1)
लिखने का समय:
लगभग 739-681 ईसा पूर्व (यशायाह की भविष्यवाणियों का समय)
ऐतिहासिक संदर्भ:
यशायाह यहूदा के चार राजाओं (Uziah, Jotham, Ahaz, Hezekiah) के समय भविष्यवाणी करता था। यह वह समय था जब इस्राएल और यहूदा ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया और असिरिया तथा बाबुल की शक्तियाँ बढ़ रही थीं।
2️ मुख्य विषय (Themes of Isaiah)
परमेश्वर की पवित्रता और न्याय – इस्राएल के पापों के कारण परमेश्वर का न्याय अपरिहार्य है।
मसीह की भविष्यवाणी और उद्धार – यीशु मसीह के जन्म, मृत्यु और पुनरुत्थान की भविष्यवाणी।
उम्मीद और पुनर्स्थापन – परमेश्वर का वादा है कि वह अपने लोगों को बचाएगा और एक नया यरूशलेम स्थापित करेगा।
राष्ट्रों के लिए परमेश्वर का संदेश – यहूदा और अन्य राष्ट्रों को चेतावनी और उद्धार का संदेश।
अंत समय की भविष्यवाणियाँ – परमेश्वर की अंतिम विजय और नए स्वर्ग और नई पृथ्वी का वादा।
3️ पुस्तक की संरचना (Outline of Isaiah)
खंड | विवरण | मुख्य अध्याय |
भाग 1 (अध्याय 1-39) | न्याय और परमेश्वर की पवित्रता | यशायाह 1, 6, 9, 11, 35 |
भाग 2 (अध्याय 40-55) | मसीह का सेवक रूप और उद्धार | यशायाह 40, 42, 53 |
भाग 3 (अध्याय 56-66) | नए स्वर्ग और नई पृथ्वी का वादा | यशायाह 60, 61, 65-66 |
4️ प्रमुख भविष्यवाणियाँ और शिक्षाएँ (Key Prophecies and Their Lessons)
यशायाह 1:18 – “यदि तुम्हारे पाप रक्त के समान लाल भी हों, तौभी वे हिम के समान श्वेत हो जाएँगे।” (परमेश्वर की क्षमा)
यशायाह 6:8 – “मैं यहाँ हूँ, मुझे भेज।” (परमेश्वर के बुलावे का उत्तर)
यशायाह 7:14 – “देखो, एक कुंवारी गर्भवती होगी और वह एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा।” (यीशु मसीह का जन्म)
यशायाह 9:6 – “क्योंकि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ है… उसका नाम अद्भुत, परामर्शी, सामर्थी परमेश्वर, अनंतकाल का पिता और शांति का राजकुमार होगा।”
यशायाह 40:31 – “जो यहोवा पर आशा लगाए रहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते हैं।”
यशायाह 53:5 – “परन्तु वह हमारे अपराधों के कारण घायल किया गया… और उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो गए।” (यीशु मसीह का बलिदान)
यशायाह 61:1-2 – यीशु ने इस पद को अपने सेवकाई के उद्देश्य के रूप में घोषित किया (लूका 4:18-19)।
5️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from Isaiah)
परमेश्वर पवित्र और धर्मी है – उसके न्याय और करुणा दोनों एक साथ चलते हैं।
मसीह हमारा उद्धारकर्ता है – उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान से ही पापों से मुक्ति मिलती है।
विश्वास और धैर्य आवश्यक हैं – परमेश्वर अपने समय में कार्य करता है।
प्रभु पर आशा रखने से नया बल मिलता है – (यशायाह 40:31)
उद्धार सभी राष्ट्रों के लिए उपलब्ध है – (यशायाह 49:6)
6️ मसीही दृष्टिकोण (Christ in Isaiah)
यशायाह को “सुसमाचार भविष्यवक्ता” (Gospel Prophet) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें यीशु मसीह के बारे में कई महत्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ की गई हैं:
यीशु का कुंवारी से जन्म – (यशायाह 7:14, मत्ती 1:23)
यीशु की दिव्यता और शासन – (यशायाह 9:6-7)
यीशु मसीह का सेवक रूप और बलिदान – (यशायाह 53)
यीशु का मिशन – टूटी आत्माओं को चंगा करना – (यशायाह 61:1-2, लूका 4:18)
यीशु का पुनरुत्थान और अनंत राज्य – (यशायाह 25:8, यशायाह 66)
7️ निष्कर्ष (Conclusion)
यशायाह की पुस्तक हमें परमेश्वर की पवित्रता, न्याय, प्रेम और उद्धार की महान योजना को दिखाती है। यह पुस्तक यीशु मसीह के आगमन, उसके बलिदान और परमेश्वर के अंतिम विजय की घोषणा करती है। मसीही विश्वासियों के लिए, यशायाह की भविष्यवाणियाँ उद्धार और अनंत जीवन की आशा को दृढ़ करती हैं।
अध्ययन प्रश्न (Study Questions)
1️ यशायाह 6:8 में यशायाह ने परमेश्वर के बुलावे का क्या उत्तर दिया?
2️ यशायाह 7:14 में मसीह के जन्म की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
3️ यशायाह 53 में यीशु के बलिदान का क्या महत्व है?
4️ यशायाह 40:31 हमें परमेश्वर पर भरोसा रखने के बारे में क्या सिखाता है?
5️ यशायाह 61:1-2 को यीशु ने अपनी सेवकाई से कैसे जोड़ा?