1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)
यहेजकेल बाइबल की एक भविष्यद्वक्तात्मक पुस्तक है जो इस्राएल के पापों के कारण परमेश्वर के न्याय और बाद में होने वाली पुनर्स्थापना पर केंद्रित है। यहेजकेल बाबुल में बंदी बनाए गए यहूदी लोगों को संबोधित करता है और उन्हें पश्चाताप तथा परमेश्वर की ओर लौटने का संदेश देता है।
लेखक:
भविष्यवक्ता यहेजकेल (याजक और भविष्यवक्ता)
लिखने का समय:
593-571 ईसा पूर्व (बाबुल में निर्वासन के दौरान)
ऐतिहासिक संदर्भ:
यहेजकेल एक याजक था जो बाबुल की बंधुआई में गया। यरूशलेम का विनाश (586 ईसा पूर्व) उसकी भविष्यवाणी का मुख्य विषय रहा। इस पुस्तक में यहूदियों को उनके पापों के बारे में चेतावनी दी गई है, लेकिन अंततः परमेश्वर के वफादार लोगों के लिए आशा का संदेश भी दिया गया है।
2️ मुख्य विषय (Themes of Ezekiel)
परमेश्वर का न्याय – पाप के कारण यहूदा पर परमेश्वर का दंड आया।
परमेश्वर की महिमा – यहेजकेल को परमेश्वर की महिमा के दर्शन हुए।
पश्चाताप और सुधार – परमेश्वर चाहता है कि लोग अपने पापों से फिरें।
नए हृदय और नई आत्मा का वादा – यहेजकेल ने नए वाचा की भविष्यवाणी की।
आशा और पुनर्स्थापना – परमेश्वर इस्राएल को पुनः स्थापित करेगा और उसका नया यरूशलेम होगा।
3️ पुस्तक की संरचना (Outline of Ezekiel)
खंड | विवरण | मुख्य अध्याय |
भाग 1 (अध्याय 1-24) | यरूशलेम पर न्याय | यहेजकेल 1, 7, 11 |
भाग 2 (अध्याय 25-32) | अन्य राष्ट्रों पर न्याय | यहेजकेल 25, 28, 30 |
भाग 3 (अध्याय 33-48) | इस्राएल की पुनर्स्थापना | यहेजकेल 36, 37, 40 |
4️ प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons from Ezekiel)
यहेजकेल 1:28 – “यहोवा की महिमा ऐसी थी कि मैं गिर पड़ा और उसने मुझसे बात की।” (परमेश्वर की महिमा)
यहेजकेल 3:17 – “हे मनुष्य के सुत, मैं तुझे इस्राएल के घराने के लिए प्रहरी ठहराता हूँ।” (भविष्यवक्ता की बुलाहट)
यहेजकेल 18:23 – “क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न होता हूँ? नहीं, वह अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे।” (पश्चाताप की पुकार)
यहेजकेल 36:26 – “मैं तुम्हें नया मन और नई आत्मा दूँगा।” (नई वाचा की प्रतिज्ञा)
यहेजकेल 37:5-6 – “हे सूखी हड्डियों, मैं तुममें प्राण डालूँगा।” (इस्राएल का पुनरुद्धार)
5️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from Ezekiel)
परमेश्वर पवित्र और न्यायी है – वह पाप को सहन नहीं करता।
परमेश्वर की महिमा वास्तविक और शक्तिशाली है – यहेजकेल को मिले दर्शन इसकी गवाही देते हैं।
पश्चाताप आवश्यक है – दुष्ट को अपने मार्ग से फिरना चाहिए।
नए हृदय और नई आत्मा की प्रतिज्ञा – यीशु मसीह में हमें आत्मिक पुनर्जन्म मिलता है।
परमेश्वर पुनर्स्थापना का परमेश्वर है – इस्राएल और समस्त मानवजाति के लिए आशा है।
6️ मसीही दृष्टिकोण (Christ in Ezekiel)
यहेजकेल यीशु मसीह की ओर संकेत करता है:
यीशु “अच्छे चरवाहे” के रूप में – (यहेजकेल 34:23-24, यूहन्ना 10:11)
यीशु आत्मिक जीवन देने वाला है – “सूखी हड्डियाँ फिर जीवित हो गईं।” (यहेजकेल 37:1-14, यूहन्ना 11:25)
यीशु परमेश्वर की महिमा का पूर्ण प्रकटन है – (यहेजकेल 1:28, यूहन्ना 1:14)
यीशु हमें नया हृदय और आत्मा देता है – (यहेजकेल 36:26, 2 कुरिन्थियों 5:17)
7️ निष्कर्ष (Conclusion)
यहेजकेल की पुस्तक परमेश्वर के न्याय और दया का संतुलित चित्र प्रस्तुत करती है। यरूशलेम के विनाश का संदेश हमें सिखाता है कि परमेश्वर पाप को हल्के में नहीं लेता, लेकिन साथ ही वह पश्चाताप करने वालों को नया जीवन और पुनर्स्थापना प्रदान करता है। यीशु मसीह के माध्यम से यह भविष्यवाणी पूरी होती है, क्योंकि वही हमें नया हृदय और आत्मा देता है।
अध्ययन प्रश्न (Study Questions)
1️ यहेजकेल को परमेश्वर ने प्रहरी क्यों नियुक्त किया? (यहेजकेल 3:17)
2️ यहेजकेल 18:23 में परमेश्वर की इच्छा के बारे में क्या कहा गया है?
3️⃣ सूखी हड्डियों की घाटी” की भविष्यवाणी का क्या अर्थ है? (यहेजकेल 37:1-14)
4️ यहेजकेल 36:26 में “नया हृदय और नई आत्मा” का क्या महत्व है?
5️ यहेजकेल की पुस्तक हमें यीशु मसीह के बारे में क्या सिखाती है?