मरकुस रचित सुसमाचार का सर्वेक्षण (Survey of the Gospel of Mark)

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1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)

मरकुस रचित सुसमाचार नया नियम की दूसरी पुस्तक है, जो विशेष रूप से रोमियों और अन्य गैर-यहूदियों को ध्यान में रखकर लिखी गई थी। इसमें यीशु मसीह के कार्यों और चमत्कारों को अधिक बल दिया गया है, बजाय उनके वंशावली या दीर्घ शिक्षाओं के। यह पुस्तक यीशु मसीह सेवक हैं” इस विषय पर केंद्रित है।

📌 लेखक:

✅ मरकुस (यूहन्ना मरकुस)प्रेरित पतरस के सहकर्मी और पौलुस के साथी (प्रेरितों 12:12; 2 तीमुथियुस 4:11)

📌 लिखने का समय:

✅ लगभग 55-65 ईस्वी (रोम में लिखा गया हो सकता है)।

📌 मुख्य उद्देश्य:

✅ यीशु को एक सेवक (Servant) और परमेश्वर का सामर्थी पुत्र दिखाना।
✅ रोमियों को यह दिखाना कि यीशु का जीवन कार्यों और शक्ति से भरा था।
✅ यीशु के कार्यों के माध्यम से सुसमाचार का प्रचार करना।


2️ मुख्य विषय (Themes of Mark)

✅ यीशु परमेश्वर के सेवक हैं।
✅ यीशु के अद्भुत कार्य और चमत्कार।
✅ क्रूस पर बलिदान और पुनरुत्थान।
✅ शिष्यता (Discipleship) की बुलाहट।
✅ यीशु का आत्मिक और दुष्टात्माओं पर अधिकार।


3️ पुस्तक की संरचना (Outline of Mark)

खंड

विवरण

अध्याय

भाग 1

यीशु का परिचय और सेवकाई की शुरुआत

1

भाग 2

यीशु की शिक्षा, चमत्कार और शिष्य बनाना

2-10

भाग 3

यीशु का यरूशलेम में प्रवेश और अंतिम सप्ताह

11-15

भाग 4

यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान

16


4️ प्रमुख घटनाएँ और शिक्षाएँ (Key Events and Teachings in Mark)

📍 यीशु का बपतिस्मा और परीक्षा (मरकुस 1:9-13)परमेश्वर द्वारा पुत्र के रूप में पुष्टि।
📍 पहला प्रचार और चमत्कार (मरकुस 1:14-45)लोगों को चंगाई और उद्धार का संदेश देना।
📍 यीशु के दृष्टांत (मरकुस 4) – “बीज बोनेवाला” और अन्य दृष्टांत।
📍 यीशु का समुद्र पर चलना (मरकुस 6:45-52)यीशु की दिव्यता प्रकट होती है।
📍 पतरस की घोषणा (मरकुस 8:27-30) – “तू मसीह है!”
📍 यीशु का रूपांतरण (मरकुस 9:2-13)मूसा और एलिय्याह के साथ यीशु की महिमा प्रकट होती है।
📍 यीशु का यरूशलेम में विजयी प्रवेश (मरकुस 11:1-11)मसीह के राजा के रूप में पहचाना जाना।
📍 क्रूस पर मृत्यु (मरकुस 15)यीशु का अंतिम बलिदान।
📍 पुनरुत्थान (मरकुस 16:1-8)यीशु मृतकों में से जी उठे!


5️ मसीही भविष्यवाणियाँ (Messianic Prophecies in Mark)

📍 मरकुस 1:2-3 – “मार्ग तैयार करनेवाला” (यशायाह 40:3 की पूर्ति)।
📍 मरकुस 4:12 – “वे सुनकर भी नहीं समझेंगे” (यशायाह 6:9-10 की पूर्ति)।
📍 मरकुस 10:45 – “मनुष्य का पुत्र अपनी जान देने आया” (यशायाह 53 की पूर्ति)।
📍 मरकुस 14:27 – “गड़ेरिये को मारूँगा” (जकर्याह 13:7 की पूर्ति)।


6️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from Mark)

✅ यीशु कार्यों के द्वारा परमेश्वर को प्रकट करते हैं।
✅ यीशु की सेवकाई हमें निःस्वार्थ सेवा की शिक्षा देती है।
✅ विश्वास रखनेवालों के लिए सामर्थ और उद्धार उपलब्ध है।
✅ क्रूस हमें उद्धार और नया जीवन प्रदान करता है।
✅ शिष्यता के लिए बलिदान आवश्यक है।


7️ निष्कर्ष (Conclusion)

मरकुस का सुसमाचार यीशु को परमेश्वर का सामर्थी सेवक दिखाता है, जो अपने प्रेम और बलिदान के द्वारा हमें उद्धार प्रदान करते हैं। यह पुस्तक हमें बुलाती है कि हम भी यीशु का अनुसरण करें और उनके राज्य के प्रचार में सहभागी बनें।


🔎 अध्ययन प्रश्न (Study Questions)

1️ मरकुस सुसमाचार का मुख्य उद्देश्य क्या है?

2️ मरकुस में यीशु को सेवक के रूप में कैसे प्रस्तुत किया गया है?
3️
 मरकुस 10:45 हमें यीशु के उद्देश्य के बारे में क्या सिखाता है?
4️
 मरकुस 16 में पुनरुत्थान के क्या प्रमाण दिए गए हैं?

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