भारत का इतिहास केवल राजाओं और युद्धों का नहीं, बल्कि धार्मिक चेतना और आत्मिक प्रवृत्तियों का भी इतिहास रहा है। विशेषकर जब हम मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त जैसे महान राजवंशों की बात करते हैं, तो यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनके शासनकाल में धर्म की क्या स्थिति थी — और क्या आधिकारिक रूप से “हिंदू देवी-देवता” राज्य धर्म का हिस्सा थे? इस लेख में हम ऐतिहासिक साक्ष्यों, पुरातात्विक खोजों और समकालीन शिलालेखों के आधार पर यह विश्लेषण करते हैं कि इन शासकों ने किस धर्म का समर्थन किया, क्या शिव, विष्णु, या अन्य ‘हिंदू देवताओं’ की पूजा को संस्थागत रूप दिया गया था, या फिर यह परंपराएं बाद में लोककथाओं और पौराणिक साहित्य के माध्यम से उभरीं। यह अध्ययन न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, बल्कि धार्मिक सत्य की खोज के लिए भी एक आवश्यक यात्रा है।
1. मौर्य वंश (Maurya Dynasty, ~322–185 ईसा पूर्व)
चंद्रगुप्त मौर्य (322–298 ई.पू.)
- चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
- ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, उन्होंने जैन धर्म अपना लिया था।
- मुद्राराक्षस जैसे ग्रंथों और जैन परंपरा में उल्लेख मिलता है कि उन्होंने अंत में “संथारा” (स्वैच्छिक उपवास मृत्यु) का पालन किया और कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में देह त्यागी।
धार्मिक दृष्टिकोण:
- वैदिक यज्ञ-आधारित परंपरा से हटकर जैन तपस्विता को अपनाना, यह दर्शाता है कि उस समय “शिव” या “विष्णु” की पूजा शासकीय संरचना का हिस्सा नहीं थी।
बिंदुसार (298–272 ई.पू.)
- धार्मिक रूप से निष्क्रिय कहे जा सकते हैं — कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं।
- कुछ स्रोतों में उन्हें “अमितघोष” कहा गया, लेकिन किसी विशेष देवी/देवता के साथ जोड़ना कठिन है।
सम्राट अशोक (268–232 ई.पू.)
- धम्म प्रचारक कहलाए — यह कोई विशुद्ध बौद्ध शब्द नहीं बल्कि नैतिकता और करुणा का प्रतीक था।
- शिला लेखों में कहीं भी “बुद्ध” या “बौद्ध धर्म” शब्द स्पष्ट रूप से नहीं है, लेकिन उनके सिद्धांत बौद्ध शिक्षाओं से मिलते हैं:
- अहिंसा
- पशुबलि निषेध
- नैतिक शासन
महत्वपूर्ण तथ्य:
- कोई “शिवलिंग”, “विष्णु मंदिर” या “देवी प्रतिमा” उस समय के शासकीय प्रमाणों में नहीं मिलती।
- इससे यह स्पष्ट होता है कि ‘हिंदू देवताओं‘ की पूजा उस काल की मुख्यधारा नहीं थी।
2. शुंग वंश (Shunga Dynasty, ~185–73 ईसा पूर्व)
पुष्यमित्र शुंग
- माना जाता है कि उन्होंने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद सत्ता प्राप्त की।
- ऐतिहासिक रूप से वे वैदिक यज्ञों जैसे “अश्वमेध यज्ञ” के पुनरुद्धारक माने जाते हैं।
- बौद्ध साहित्य में उन्हें बौद्ध-विरोधी और सांची के स्तूपों के विध्वंसक के रूप में चित्रित किया गया है।
परंतु एक विरोधाभास:
- उनके काल में सांची और भरहुत स्तूपों का नवीनीकरण भी हुआ — यह बताता है कि उन्होंने बौद्ध स्मारकों को पूरी तरह नष्ट नहीं किया।
धार्मिक स्थिति पर प्रश्न:
- क्या उन्होंने वास्तव में शिव पूजा को राज्यधर्म बनाया था?
- या फिर उनके बाद की ग्रामीण परंपराओं और पुराणों में यह छवि बनाई गई?
3. कुषाण वंश (Kushan Dynasty, ~1st–3rd सदी ई.)
कनिष्क (Kanishka)
- उन्होंने बौद्ध धर्म (विशेष रूप से महायान) को बढ़ावा दिया।
- गांधार और मथुरा कला शैलियों में बुद्ध प्रतिमाएं बनवाने वाले पहले शासकों में से एक थे।
- कनिष्क स्तूप, सारनाथ, और अन्य स्थल बौद्ध प्रभाव के जीवंत प्रमाण हैं।
ध्यान देने योग्य तथ्य:
- कहीं भी किसी “हिंदू देवी-देवता” की पूजा, मूर्ति, मंदिर या शासकीय संरचना में उल्लेख नहीं।
सारांश:
- इस युग में बुद्ध की छवि, ध्यान और ज्ञान का वर्चस्व था — शिव या विष्णु कहीं नहीं थे।
4. गुप्त वंश (Gupta Dynasty, ~320–550 ई.)
- अक्सर “भारत का स्वर्ण युग” कहा जाता है।
- इस काल में वैदिक शिक्षा, विज्ञान, गणित, साहित्य (कालिदास), और मंदिर वास्तुकला का विकास हुआ।
धार्मिक विविधता:
- बुद्ध, विष्णु, शिव, और देवी की पूजा — सभी को शासकीय संरक्षण मिला।
- विष्णु के “वराह अवतार” जैसे पैनलों का निर्माण मंदिरों में हुआ।
महत्वपूर्ण मोड़:
- पहली बार हिन्दू देवी-देवताओं को व्यवस्थित राज्यधर्म के रूप में संरचित किया गया।
- इससे पहले न तो शिव-मंदिर और न ही विष्णु-प्रतिमाएं इस पैमाने पर दिखती हैं।
गुप्त युग तक आते-आते:
- “हिंदू धर्म” जैसा जो समेकित देवतावादी ढांचा आज दिखता है, उसका प्रारंभ इसी युग में होता है।
- गुप्त शासन के बाद पुराण रचना और “शिव-पुराण”, “भागवत पुराण” जैसी कथाएँ सामने आती हैं — जिनमें देवी-देवताओं का पूरा ब्रह्मांड रचा जाता है।
निष्कर्ष: क्या “हिंदू देवता” प्राचीन भारत की मूल धार्मिक परंपरा में थे?
ऐतिहासिक जांच से स्पष्ट होता है:
- मौर्य, शुंग, कुषाण जैसे राजवंशों ने कभी भी “शिव”, “विष्णु” या “देवी” को राज्यधर्म या सार्वजनिक आस्था का प्रतीक नहीं बनाया।
- उनका झुकाव या तो बौद्ध, जैन या नैतिक धर्मों की ओर था।
- “हिंदू देवताओं” की व्यापक मूर्ति-पूजा, मंदिर संस्कृति, और पुराणों की कथाएँ गुप्त युग के बाद व्यवस्थित रूप से उभरती हैं।