यह छोटा लेकिन गम्भीर अध्याय “अंतिम सात संकटों”(Seven Last Plagues) का प्रस्तावना है। इसमें परमेश्वर की पवित्रता, न्याय, और क्रोध की महिमा दिखाई गई है। यह अध्याय हमें बताता है कि परमेश्वर का न्याय देर से आता है, पर जब आता है, तो सम्पूर्ण और न्यायपूर्ण होता है। इसमें विजयी विश्वासी भी शामिल हैं जो “पशु” (beast) और उसकी मूरत पर जय पाते हैं।
1 पद: सात अंतिम विपत्तियाँ
“फिर मैं ने स्वर्ग में एक और बड़ा और आश्चर्यजनक चिन्ह देखा: सात स्वर्गदूत जिन के पास सात अंतिम विपत्तियाँ थीं।”
प्रतीक और अर्थ:
“बड़ा और आश्चर्यजनक चिन्ह” – यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है; अब परमेश्वर का क्रोध पूर्ण रूप से प्रकट होने वाला है।
सात विपत्तियाँ – ये अंतिम सात “कटोरों” (bowls) के रूप में अगले अध्याय (प्रकाशितवाक्य 16) में प्रकट होंगी।
“पूर्ण हुआ” – यह परमेश्वर के धैर्य की पूर्णता और न्याय की चरम अवस्था को दर्शाता है।
️ सीख: परमेश्वर न्याय करता है, पर पहले चेतावनी और समय देता है।
2-4 पद: कांच के समुद्र पर खड़े विजयी जन
“…और मैंने कांच के समुद्र को देखा… और जो पशु और उसकी मूरत और उसकी छाप और उसके नाम के अंक से जय पाकर खड़े थे… वे परमेश्वर का वीणा बजाते थे।”
प्रतीक और अर्थ:
कांच का समुद्र – परमेश्वर की पवित्रता और स्वर्गीय स्थिति का प्रतीक।
आग मिश्रित – न्याय का तत्व शामिल है; ये वे हैं जो अत्याचार से होकर निकले हैं।
“जय पाने वाले” – वे जिन्होंने पशु (दुष्ट व्यवस्था) की पूजा से इनकार किया, भले ही कीमत जान की हो।
वीणा बजाना और गीत गाना – वे परमेश्वर की महिमा करते हैं, जैसे मूसा और मेम्ना का गीत (छूट और उद्धार का गीत)।
गीत के शब्द (3-4 पद): “हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे काम बड़े और अद्भुत हैं… सब जातियाँ तेरे पास आएँगी, और तेरी उपासना करेंगी, क्योंकि तेरे न्याय प्रकट हुए हैं।”
️ सीख: परमेश्वर की उपासना के लिए हमारी विजय, धीरज और निष्ठा आवश्यक है।
5-8 पद: मंदिर खुलता है और सात स्वर्गदूत निकलते हैं
“…मैं ने देखा कि स्वर्ग में साक्षी की मण्डली का मंदिर खुल गया… सात स्वर्गदूत निकले… और उन को सात सुनहरी कटोरे दिए गए… और मंदिर धुएं से भर गया…”
प्रतीक और अर्थ:
साक्षी की मण्डली का मंदिर – परमेश्वर की उपस्थिति का केंद्र; अब न्याय उसके सिंहासन से निकलता है।
स्वर्ण कटोरे – ये परमेश्वर के क्रोध के प्रतीक हैं; ये “परिपूर्ण” और “पवित्र” क्रोध हैं, जो न्याय के लिए निकलते हैं।
धुआँ – परमेश्वर की महिमा और शक्ति का चिन्ह (निर्ग. 40:34, यशा. 6:4)।
कोई प्रवेश न कर सका – यह दिखाता है कि अब कोई मध्यस्थता नहीं; निर्णय अंतिम है।
सीख: जब परमेश्वर का धैर्य समाप्त होता है, तो न्याय निश्चित और भयानक होता है।
इस अध्याय से क्या सिखें?
परमेश्वर न्यायी और पवित्र है – उसकी महिमा को हल्के में न लें। विरोधों के बीच भी विश्वासियों की विजय संभव है – निष्ठा की कीमत होती है। परमेश्वर के क्रोध से बचने का एक ही मार्ग है: पश्चाताप और यीशु में विश्वास। जब न्याय प्रारंभ होता है, तब प्रार्थना या आराधना भी रोक दी जाती है – क्योंकि समय समाप्त हो चुका होता है।
याद रखने योग्य वचन:
“हे प्रभु, कौन तेरा भय न मानेगा और तेरे नाम की महिमा न करेगा? क्योंकि तू ही पवित्र है।”