अध्याय की झलक: यह अध्याय परमेश्वर के न्याय का और भी भयानक चित्र प्रस्तुत करता है। पाँचवीं तुरही में अधोलोक (Abyss) से भयावह टिड्डियों का दल निकलता है, और छठी तुरही में घुड़सवार सेनाएँ पृथ्वी के एक तिहाई मनुष्यों का नाश करती हैं। यह अध्याय दिखाता है कि मनुष्य कितना भी पीड़ा झेले, फिर भी कई लोग मन नहीं फिराते।
1-12 पद: पाँचवीं तुरही – अधोलोक से टिड्डियों का आतंक
पाँचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी:
एक तारे को स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरते हुए देखा गया।
उसे अधोलोक के कुएँ की कुंजी दी गई।
कुएँ से धुआँ उठा, जैसे बड़े भट्ठी से निकलता है।
धुएँ से टिड्डी जैसे जीव निकले, जिनके पास बिच्छू जैसी शक्ति थी।
उन्हें आदेश था कि वे न हरी घास, न वृक्ष, बल्कि केवल उन मनुष्यों को हानि पहुँचाएँ जिनके माथे पर परमेश्वर की मुहर नहीं है।
वे पाँच महीने तक लोगों को सताएँगे, पर मारेंगे नहीं।
लोग मौत चाहेंगे, लेकिन मौत उनसे दूर भागेगी।
प्रतीक और उनके अर्थ:
गिरा हुआ तारा — एक स्वर्गदूत या दूत जो गिर चुका है, संभवतः शैतान।
अधोलोक का कुआँ — बुराई का कारागार, दुष्ट शक्तियों का स्रोत।
धुआँ — अंधकार, भ्रम और पाप का प्रसार।
टिड्डियाँ — सामान्य टिड्डियाँ नहीं, बल्कि दुष्ट आत्मिक शक्तियाँ, जो पीड़ा पहुँचाती हैं।
बिच्छू का डंक — गहरी पीड़ा और मानसिक-आध्यात्मिक यातना का प्रतीक।
पाँच महीने — सीमित समय के लिए परमेश्वर का नियंत्रित न्याय।
सीख: परमेश्वर के बिना जीवन अंधकार और पीड़ा से भर जाता है।
13-19 पद: छठी तुरही – घातक घुड़सवारों की सेना
छठे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी:
स्वर्ण वेदी के चार सींगों से एक आवाज़ आई।
चार स्वर्गदूतों को छोड़ने का आदेश मिला, जो बड़े यमुना (यूफ्रेटीस) नदी के पास बंधे थे।
इन चारों ने एक बहुत बड़ी सेना को छोड़ा — दो करोड़ घुड़सवार!
इन घुड़सवारों के घोड़ों के सिर शेरों जैसे थे, और उनके मुँह से आग, धुआँ और गंधक निकलती थी।
इन तीन विपत्तियों (आग, धुआँ, गंधक) से पृथ्वी का एक तिहाई मानवता मारी गई।
प्रतीक और उनके अर्थ:
चार बँधे हुए स्वर्गदूत — न्याय के लिए ठहराए गए स्वर्गिक प्राणी, अब छोड़ दिए गए।
यमुना (यूफ्रेटीस) — प्राचीन सभ्यताओं का केंद्र; बाइबिल में अक्सर संकटों का स्रोत।
दो करोड़ घुड़सवार — विशाल, अजेय विनाशकारी सेना।
घोड़ों के मुँह से आग, धुआँ और गंधक निकलना — विनाशकारी युद्ध और परमाणु/रासायनिक हमलों का प्रतीक भी हो सकता है।
तीन विपत्तियाँ — व्यापक मौत और तबाही का प्रतीक।
सीख: जब मानवता पश्चाताप नहीं करती, तो न्याय और भी कठोर होता जाता है।
20-21 पद: फिर भी मन फिराया नहीं
इतनी भयंकर विपत्तियों के बाद भी बचे हुए मनुष्यों ने अपने पापों से मन नहीं फिराया।
वे अभी भी दुष्ट आत्माओं की पूजा करते रहे,
सोने, चाँदी, पीतल, पत्थर और लकड़ी की मूर्तियों की, जो न देखती, न सुनती, न चलती हैं।
उन्होंने हत्याएँ, जादू-टोना, व्यभिचार और चोरी करना नहीं छोड़ा।
प्रतीक:
मूर्ति पूजा और पाप में लिप्तता — मानव हृदय की कठोरता और आत्मिक अंधापन।
सीख: दुख और विपत्ति भी यदि पश्चाताप नहीं लाती, तो इसका परिणाम और भी भयानक हो सकता है।
इस अध्याय से क्या सिखें? परमेश्वर का न्याय गहरा और निश्चित है। दुष्ट आत्माएँ भी परमेश्वर की अनुमति के बिना कार्य नहीं कर सकतीं। पश्चाताप करने का समय सीमित है — अवसर रहते प्रभु की ओर लौटना चाहिए। कठोर हृदय विनाश को बुलाता है।
याद रखने योग्य वचन: “और उन लोगों ने न तो अपने हाथों के कामों से मन फिराया, न दुष्टात्माओं की, न मूर्तियों की उपासना छोड़ दी…” (प्रकाशित वाक्य 9:20)