2 इतिहास की पुस्तक का सर्वेक्षण (Survey of 2 Chronicles)

1️ पुस्तक का परिचय

2 इतिहास की पुस्तक मुख्य रूप से यहूदा के राजाओं के इतिहास को प्रस्तुत करती है। इसमें सुलेमान के स्वर्णिम युग से लेकर यहूदा के पतन और बाबुली बंधुआई तक की घटनाएँ सम्मिलित हैं। यह पुस्तक यहूदी राष्ट्र को स्मरण कराती है कि परमेश्वर का अनुग्रह और न्याय दोनों कार्यरत रहते हैं।

  • लेखक: पारंपरिक रूप से एज्रा को लेखक माना जाता है।
  • लिखने का समय: लगभग 450-425 ईसा पूर्व।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: बाबुली निर्वासन के बाद, जब यहूदी यरूशलेम लौट रहे थे।

2️ मुख्य विषय (Themes of 2 Chronicles)

  1. सुलेमान का शासन और मंदिर का निर्माणपरमेश्वर की उपस्थिति और आराधना का महत्व।
  2. यहूदा के राजाओं का इतिहासआज्ञाकारिता और अवज्ञा के परिणाम।
  3. परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँदाऊद के वंश से मसीहा का आना।
  4. आराधना और पवित्रतासच्ची आराधना का महत्व।
  5. परमेश्वर का न्याय और दयायहूदा की बंधुआई और फिर से पुनर्स्थापना की आशा।

3️ पुस्तक की संरचना (Outline of 2 Chronicles)

खंड

विवरण

मुख्य अध्याय

1. सुलेमान का राज्य और मंदिर का निर्माण

सुलेमान की बुद्धि, मंदिर निर्माण और उसकी आराधना

अध्याय 1-9

2. यहूदा के राजाओं का इतिहास

यहोशापात, हिजकिय्याह, योशिय्याह और अन्य राजाओं का शासन

अध्याय 10-36

3. यहूदा का पतन और बाबुली बंधुआई

यहूदा के पतन और बाबुली निर्वासन का वर्णन

अध्याय 36


4️ प्रमुख घटनाएँ (Key Events in 2 Chronicles)

  1. सुलेमान का शासन और मंदिर का निर्माण (अध्याय 1-9)
    • सुलेमान की बुद्धि और संपत्ति
    • मंदिर का निर्माण और उसका समर्पण
    • सुलेमान की आराधना और उसकी उपलब्धियाँ
  2. यहूदा के राजाओं का शासन (अध्याय 10-36)
    • रहूबियाम की मूर्खता और राज्य का विभाजन
    • यहोशापात का धार्मिक सुधार
    • हिजकिय्याह और योशिय्याह की धार्मिक पुनर्स्थापना
    • अन्य दुष्ट राजाओं का वर्णन
  3. बाबुली बंधुआई (अध्याय 36)
    • यहूदा के अंतिम राजा
    • बाबुल की सेना द्वारा यरूशलेम का विनाश
    • परमेश्वर का न्याय और बंधुआई

5️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from 2 Chronicles)

✅ सच्ची आराधना महत्वपूर्ण हैसुलेमान का मंदिर हमें परमेश्वर की उपस्थिति की याद दिलाता है।
✅ परमेश्वर की आज्ञाकारिता अनिवार्य हैअच्छे राजाओं को आशीर्वाद मिला, जबकि दुष्ट राजाओं को दंड मिला।
✅ न्याय और अनुग्रह दोनों कार्यरत हैंपरमेश्वर दंड देता है, लेकिन पश्चाताप करने वालों पर दया करता है।
✅ मसीही जीवन में नेतृत्व का महत्वअच्छे राजा अपने लोगों को परमेश्वर की ओर ले गए, जबकि दुष्ट राजाओं ने विनाश लाया।


6️ मसीही दृष्टिकोण (Christ in 2 Chronicles)

🔹 सुलेमान और मसीहसुलेमान की बुद्धि और शासन यीशु के भविष्य के राज्य का संकेत हैं।
🔹 मंदिर और यीशुमंदिर की उपस्थिति यीशु मसीह के आत्मिक मंदिर (कलीसिया) की ओर संकेत करती है।
🔹 अच्छे राजा और यीशुसुलेमान, हिजकिय्याह और योशिय्याह जैसे अच्छे राजा यीशु के धर्मी राज्य की झलक दिखाते हैं।
🔹 परमेश्वर की प्रतिज्ञादाऊद के वंश से आने वाला सच्चा राजा यीशु ही है।


7️ निष्कर्ष (Conclusion)

2 इतिहास की पुस्तक यह सिखाती है कि जब लोग परमेश्वर की ओर मुड़ते हैं, तो वह उन्हें आशीषित करता है, लेकिन जब वे विद्रोह करते हैं, तो वह न्याय करता है। यह हमें यीशु मसीह की ओर इंगित करती है, जो सच्चा राजा और उद्धारकर्ता है।

🔎 अध्ययन प्रश्न:
1️
 सुलेमान के मंदिर का मसीही जीवन में क्या महत्व है?
2️
 यहूदा के अच्छे और बुरे राजाओं से हम क्या सीख सकते हैं?
3️
 2 इतिहास का संदेश हमारे आत्मिक जीवन के लिए कैसे उपयोगी है?

 

 

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