1. परिचय (Introduction)
- नाम और अर्थ: हिब्रानी में इसे “शेमोत” (שמות) कहा गया है जिसका अर्थ है – “नाम” (पहले पद से लिया गया)। ग्रीक अनुवाद (Septuagint) में इसका नाम “निर्गमन – Exodos” दिया गया, जिसका अर्थ है “बाहर निकलना”।
- लेखक: मूसा (निर्गमन 17:14; 24:4)।
- समय और स्थान: लगभग 1446 ई.पू. (कुछ विद्वानों के अनुसार 13वीं सदी ई.पू.)। स्थान – मुख्य रूप से मिस्र और सीनै पहाड़।
- प्राप्तकर्ता: इस्राएल की प्रजा और आने वाली पीढ़ियाँ।
- उद्देश्य: परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों को दासत्व से छुड़ाया और उन्हें अपनी व्यवस्था देकर एक पवित्र जाति के रूप में स्थापित किया।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
- इस्राएली याकूब के परिवार के रूप में मिस्र आए (उत्पत्ति 46)। समय बीतने पर वे एक महान जाति बन गए।
- फिरौन ने उन्हें दास बना लिया और कठोर परिश्रम कराया।
- परमेश्वर ने मूसा को उठाकर इस्राएल को दासत्व से छुड़ाया।
- निर्गमन इस्राएल राष्ट्र के जन्म का प्रतीक है।
- यह पुस्तक बाइबल की पहली महान “उद्धार घटना” को दर्शाती है।
3. संरचना (Outline / Structure)
- मिस्र में दासत्व और छुड़ौती (Ch. 1–15)
- दासत्व, मूसा का बुलावा, 10 विपत्तियाँ, फसह, लाल समुद्र से पार उतरना।
- मरुभूमि में यात्रा (Ch. 16–18)
- मन्ना और पानी की व्यवस्था, अमालेकियों पर विजय, यित्रो की सलाह।
- सीनै पर वाचा और व्यवस्था (Ch. 19–24)
- दस आज्ञाएँ, वाचा का स्थापित होना।
- मंदिरऔर उपासना व्यवस्था (Ch. 25–40)
- मंदिरके लिए निर्देश, याजकों की स्थापना, सोने का बछड़ा पाप, मंदिरका निर्माण और परमेश्वर की महिमा का उतरना।
4. मुख्य विषय (Major Themes)
- परमेश्वर का उद्धार: दासत्व से मुक्ति, मसीह के क्रूस द्वारा उद्धार की छाया।
- वाचा और व्यवस्था: परमेश्वर और उसकी प्रजा का संबंध नियम और आज्ञाओं पर आधारित।
- उपासना और परमेश्वर की उपस्थिति: मंदिरपरमेश्वर की प्रजा के बीच उसकी उपस्थिति का प्रतीक।
- यीशु मसीह का प्रतिबिंब:
- फसह का मेम्ना → मसीह का बलिदान (1 कुरिन्थियों 5:7)।
- लाल समुद्र → बपतिस्मा का चित्रण (1 कुरिन्थियों 10:1-2)।
- मन्ना → जीवित रोटी यीशु (यूहन्ना 6:31-35)।
- चट्टान से पानी → पवित्र आत्मा और मसीह (1 कुरिन्थियों 10:4)।
5. महत्वपूर्ण पद (Key Verses)
- निर्गमन 3:14 – “मैं जो हूँ सो हूँ।”
- निर्गमन 12:13 – “लहू तुम्हारे लिए चिन्ह होगा।”
- निर्गमन 20:2-3 – “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ… मेरे सिवाय तेरा और कोई देवता न हो।”
- निर्गमन 33:14 – “मेरा मुख तेरे साथ चलेगा और मैं तुझे विश्राम दूँगा।”
6. प्रमुख शिक्षाएँ (Key Doctrinal Teachings)
- उद्धार का सिद्धांत: खून (फसह) और शक्ति (समुद्र पार) से मुक्ति।
- परमेश्वर की पवित्रता और न्याय।
- व्यवस्था: परमेश्वर के नैतिक मानक।
- उपासना का केंद्र: परमेश्वर की उपस्थिति के लिए मंडप।
- मध्यस्थता: मूसा एक प्रकार से मसीह की छाया।
7. विशेषताएँ (Unique Features)
- यह पुस्तक इस्राएल के राष्ट्रीय जन्म का विवरण देती है।
- फसह की स्थापना (जो मसीह के क्रूस का प्रतिरूप है)।
- दस आज्ञाएँ – जो विश्व की नैतिक व्यवस्था की नींव बनीं।
- मंदिर(Tabernacle) – मसीह और उसकी कलीसिया का गहरा प्रतिरूप।
8. व्यावहारिक अनुप्रयोग (Practical Applications)
- परमेश्वर अपने लोगों को दासत्व से छुड़ाने वाला है, आज भी वह पाप और बंधन से छुड़ाता है।
- परमेश्वर की उपस्थिति के बिना कोई भी यात्रा सफल नहीं होती।
- परमेश्वर अपने लोगों से आज्ञाकारिता और पवित्रता चाहता है।
- विश्वासियों को हमेशा याद रखना चाहिए कि उद्धार केवल लहू और बलिदान द्वारा मिलता है।
9. सारांश (Summary)
निर्गमन वह पुस्तक है जिसमें परमेश्वर ने अपनी शक्ति और दया द्वारा इस्राएल को दासत्व से छुड़ाकर उन्हें अपने साथ वाचा में बाँधा। फसह का मेम्ना, लाल समुद्र, मन्ना, और मंदिर– सब मिलकर मसीह और उसके उद्धार के महान कार्य की छाया प्रस्तुत करते हैं। यह पुस्तक सिखाती है कि परमेश्वर पवित्र है, वह उद्धार करता है, और अपनी प्रजा के बीच वास करना चाहता है।