1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)
यूहन्ना सुसमाचार नया नियम की चौथी पुस्तक है, जो यीशु के ईश्वरीय स्वरूप (Deity of Christ) और उनके उद्धार कार्य को प्रमुख रूप से उजागर करती है। यह अन्य तीन सुसमाचारों (मत्ती, मरकुस, लूका) से भिन्न है और गहरी आत्मिक शिक्षा प्रदान करता है।
लेखक:
यूहन्ना प्रेरित – जब्दी का पुत्र और यीशु के 12 शिष्यों में से एक।
लिखने का समय:
लगभग 85-95 ईस्वी (एशिया माइनर या इफिसुस में लिखा गया हो सकता है)।
मुख्य उद्देश्य:
यीशु को परमेश्वर का पुत्र प्रमाणित करना (यूहन्ना 20:31)।
उद्धार के लिए विश्वास पर बल देना।
यीशु के महत्वपूर्ण चमत्कारों और उनके आत्मिक अर्थों को प्रकट करना।
प्रेम, अनुग्रह और सत्य को उजागर करना।
2️ मुख्य विषय (Themes of John)
यीशु का ईश्वरीय स्वरूप (Divinity of Christ)।
विश्वास द्वारा उद्धार (Salvation through Faith)।
परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह।
अनन्त जीवन और पुनरुत्थान।
पवित्र आत्मा की भूमिका।
3️ पुस्तक की संरचना (Outline of John)
खंड | विवरण | अध्याय |
भाग 1 | यीशु का परिचय: वचन देह बना | 1 |
भाग 2 | यीशु की सार्वजनिक सेवकाई | 2-12 |
भाग 3 | यीशु की निजी शिक्षा और शिष्यों से संवाद | 13-17 |
भाग 4 | यीशु का क्रूस पर चढ़ना और पुनरुत्थान | 18-21 |
4️ प्रमुख घटनाएँ और शिक्षाएँ (Key Events and Teachings in John)
यीशु “वचन” हैं (यूहन्ना 1:1-14) – “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।”
काना में पहला चमत्कार (यूहन्ना 2:1-11) – पानी को दाखरस में बदलना।
निकुदेमुस और नया जन्म (यूहन्ना 3:1-21) – “जब तक कोई नया जन्म न ले, वह परमेश्वर के राज्य को नहीं देख सकता।”
समारी स्त्री से भेंट (यूहन्ना 4:1-42) – यीशु ने “जीवन का जल” देने की प्रतिज्ञा की।
5000 लोगों को भोजन कराना (यूहन्ना 6:1-15) – यीशु “जीवन की रोटी” हैं।
अंधे को चंगा करना (यूहन्ना 9:1-41) – “मैं जगत की ज्योति हूँ।”
लाजर को जिलाना (यूहन्ना 11:1-44) – “मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ।”
अंतिम भोज और सेवकाई का पाठ (यूहन्ना 13:1-20) – यीशु ने शिष्यों के पैर धोए।
यीशु का गहन प्रार्थना (यूहन्ना 17) – “हे पिता, जैसे हम एक हैं, वैसे ही वे भी एक हों।”
क्रूस पर बलिदान और पुनरुत्थान (यूहन्ना 18-20) – “यह पूरा हुआ!”
पुनर्जीवित यीशु और पतरस की बहाली (यूहन्ना 21:15-19) – “मेरी भेड़ों की चरवाही कर।”
5️ यीशु के “मैं हूँ” कथन (The Seven “I AM” Statements)
1️ “मैं जीवन की रोटी हूँ” (6:35) – यीशु हमारी आत्मिक भूख को तृप्त करते हैं।
2️ “मैं जगत की ज्योति हूँ” (8:12) – यीशु हमें आध्यात्मिक अंधकार से निकालते हैं।
3️ “मैं भेड़ों का द्वार हूँ” (10:7) – केवल यीशु के द्वारा ही उद्धार संभव है।
4️ “मैं अच्छा चरवाहा हूँ” (10:11) – यीशु अपने लोगों के लिए जान देता है।
5️ “मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ” (11:25) – यीशु अनंत जीवन प्रदान करते हैं।
6️ “मैं मार्ग, सत्य और जीवन हूँ” (14:6) – परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग यीशु हैं।
7️ “मैं सच्ची दाखलता हूँ” (15:1) – हमें यीशु से जुड़े रहना चाहिए।
6️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from John)
यीशु ही एकमात्र मार्ग हैं।
विश्वास द्वारा उद्धार प्राप्त होता है।
परमेश्वर का प्रेम अनंत और असीम है।
पवित्र आत्मा हमारा सहायक है।
यीशु की शिक्षाओं का पालन करने से सच्ची शांति मिलती है।
7️ मसीही भविष्यवाणियाँ (Messianic Prophecies in John)
यूहन्ना 1:29 – “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है!” (यशायाह 53:7 की पूर्ति)।
यूहन्ना 3:14-15 – क्रूस पर चढ़ाए जाने की भविष्यवाणी (गिनती 21:9 की पूर्ति)।
यूहन्ना 12:13-15 – यरूशलेम में विजयी प्रवेश (जकर्याह 9:9 की पूर्ति)।
यूहन्ना 19:36-37 – यीशु की हड्डी नहीं तोड़ी गई (भजन संहिता 34:20 की पूर्ति)।
8️ निष्कर्ष (Conclusion)
यूहन्ना सुसमाचार हमें यह स्पष्ट करता है कि यीशु मसीह केवल एक महान शिक्षक या भविष्यद्वक्ता नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर हैं। वे उद्धार और अनन्त जीवन देने वाले हैं। हमें उन पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए ताकि हम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकें (यूहन्ना 3:16)।
अध्ययन प्रश्न (Study Questions)
1️ यूहन्ना 1:1-3 हमें यीशु के बारे में क्या सिखाता है?
2️ यीशु के “मैं हूँ” कथनों का क्या महत्व है?
3️ समारी स्त्री के साथ यीशु की बातचीत से हमें क्या सीख मिलती है?
4️ यूहन्ना 20:31 के अनुसार इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य क्या है?