1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)
गिनती बाइबल की चौथी पुस्तक है और इसे संख्याओं की पुस्तक कहा जाता है क्योंकि इसमें इस्राएल की दो जनगणनाएँ शामिल हैं। यह पुस्तक इस्राएलियों की मिस्र से कनान की यात्रा को दर्शाती है, जिसमें वे परमेश्वर की आज्ञाकारिता और अविश्वास के कारण 40 वर्षों तक जंगल में भटकते रहे।
लेखक:
मूसा (परंपरागत रूप से स्वीकार किया जाता है)
लिखने का समय:
लगभग 1445-1405 ईसा पूर्व
ऐतिहासिक संदर्भ:
यह पुस्तक इस्राएल की यात्रा का वर्णन करती है जब वे मिस्र से निकलने के बाद सिनै पर्वत से कनान देश की ओर बढ़ रहे थे। परमेश्वर ने उन्हें व्यवस्था दी, लेकिन उनके अविश्वास और विद्रोह के कारण वे वाचा के देश (Canaan) में प्रवेश करने में देरी करते हैं।
2️ मुख्य विषय (Themes of Numbers)
परमेश्वर की विश्वासयोग्यता – परमेश्वर अपने वादों को पूरा करता है, चाहे इस्राएल के लोग उसकी आज्ञा मानें या न मानें।
गिनती और जनगणना – इस्राएलियों की दो बार गिनती की गई (अध्याय 1 और 26)।
अज्ञाकारिता और विश्वास – इस्राएलियों ने बार-बार परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाया, जिसके कारण वे जंगल में 40 वर्षों तक भटकते रहे।
याजकीय सेवा और व्यवस्था – लेवीय याजकों को सेवा के विशेष नियम दिए गए।
यात्रा और विद्रोह – लोगों ने मूसा और हारून के विरुद्ध कई बार विद्रोह किया।
3️ पुस्तक की संरचना (Outline of Numbers)
खंड | विवरण | अध्याय |
भाग 1 | पहली जनगणना और व्यवस्था | 1-10 |
भाग 2 | जंगल में यात्रा और विद्रोह | 11-20 |
भाग 3 | दूसरी जनगणना और तैयारियाँ | 21-36 |
4️ प्रमुख घटनाएँ और शिक्षाएँ (Key Events and Lessons in Numbers)
पहली जनगणना (अध्याय 1-4) – इस्राएल के पुरुषों की गिनती सेना के लिए की गई।
याजकों और लेवियों की सेवा (अध्याय 3-4) – याजकों को विशेष दायित्व दिए गए।
कुड़कुड़ाहट और अविश्वास (अध्याय 11-14) – इस्राएलियों ने भोजन और पानी के लिए शिकायत की।
कालेब और यहोशू की विश्वासयोग्यता (अध्याय 13-14) – जब अन्य गुप्तचरों ने डर फैलाया, कालेब और यहोशू ने परमेश्वर पर भरोसा रखा।
कोरह का विद्रोह (अध्याय 16) – कोरह, दातान और अबीराम ने मूसा और हारून के विरुद्ध विद्रोह किया, और परमेश्वर ने उन्हें नष्ट कर दिया।
मोआब का राजा बालाक और भविष्यद्वक्ता बिलाम (अध्याय 22-24) – बालाक ने बिलाम से इस्राएल को शाप देने को कहा, लेकिन परमेश्वर ने आशीष दी।
दूसरी जनगणना (अध्याय 26) – पहली पीढ़ी की मृत्यु के बाद दूसरी पीढ़ी की गिनती हुई।
यहोशू की नियुक्ति (अध्याय 27) – यहोशू मूसा का उत्तराधिकारी बना।
प्रतिज्ञा किए गए देश में प्रवेश की तैयारी (अध्याय 32-36) – इस्राएल ने कनान में प्रवेश करने की तैयारी की।
5️ मसीही भविष्यवाणियाँ (Messianic Prophecies in Numbers)
बिलाम की भविष्यवाणी (गिनती 24:17) – “एक तारा याकूब से निकलेगा।” यह मसीह के आगमन की भविष्यवाणी करता है।
पीतल का साँप (गिनती 21:8-9) – यह यीशु मसीह के क्रूस पर चढ़ने का प्रतीक है (यूहन्ना 3:14-15)।
बलिदान और शुद्धि के नियम – यीशु मसीह अंतिम और सिद्ध बलिदान हैं।
यहोशू के नेतृत्व में प्रवेश – यह मसीह द्वारा विश्वासियों को अनंत जीवन में ले जाने का संकेत करता है।
6️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from Numbers)
विश्वास की आवश्यकता – अविश्वास और कुड़कुड़ाहट परमेश्वर के आशीषों से वंचित कर सकते हैं।
परमेश्वर के वचन की स्थिरता – जो परमेश्वर कहता है, वह पूरा करता है।
परमेश्वर की व्यवस्था का पालन – उसके मार्गों पर चलने से आशीष मिलती है।
मसीह में उद्धार – पीतल के साँप की घटना यीशु मसीह के क्रूस की ओर संकेत करती है।
7️ निष्कर्ष (Conclusion)
गिनती की पुस्तक हमें सिखाती है कि परमेश्वर विश्वासयोग्य है, लेकिन उसका अनुसरण करने के लिए विश्वास और आज्ञाकारिता आवश्यक है। इस्राएलियों ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया और उनकी यात्रा लंबी हो गई, लेकिन परमेश्वर ने अपने वादों को पूरा किया और उन्हें प्रतिज्ञा किए गए देश की सीमा तक पहुँचाया।
अध्ययन प्रश्न (Study Questions)
1️ गिनती की पुस्तक में दो बार जनगणना क्यों की गई?
2️ अविश्वास और कुड़कुड़ाहट के कारण इस्राएलियों को क्या दंड मिला?
3️ पीतल के साँप का यीशु मसीह के क्रूस से क्या संबंध है?
4️ बिलाम की भविष्यवाणी (गिनती 24:17) का मसीही महत्व क्या है?