1. परिचय (Introduction)
- नाम और अर्थ: हिब्रानी नाम “बेमिदबार” (בְּמִדְבַּר) जिसका अर्थ है “मरुभूमि में”। ग्रीक नाम Arithmoi से अंग्रेजी नाम Numbers आया, जिसका अर्थ है “गिनती”।
- लेखक: मूसा (गिनती 33:2; गिनती 36:13)।
- समय और स्थान: लगभग 1445–1405 ई.पू.। घटनाएँ मिस्र से निकलने के बाद सीनै से मोआब की तराई तक (40 साल की यात्रा) की हैं।
- प्राप्तकर्ता: इस्राएल की प्रजा और आने वाली पीढ़ियाँ।
- उद्देश्य: परमेश्वर की प्रजा के मरुभूमि के अनुभवों द्वारा यह सिखाना कि अविश्वास और आज्ञा उल्लंघन से ठोकर मिलती है, पर विश्वास और आज्ञाकारिता से आशीष और प्रतिज्ञा पूरी होती है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
- निर्गमन और लैव्यव्यवस्था के बाद इस्राएल अब प्रतिज्ञात देश में प्रवेश की तैयारी कर रहा था।
- गिनती में दो बार जनगणना होती है – पहली पीढ़ी (Ch. 1) और नई पीढ़ी (Ch. 26)।
- अविश्वास और विद्रोह के कारण पहली पीढ़ी मरुभूमि में नाश हो गई और नई पीढ़ी कनान में प्रवेश के लिए तैयार हुई।
3. संरचना (Outline / Structure)
- पहली पीढ़ी – मरुभूमि की असफलता (Ch. 1-25)
- जनगणना (Ch. 1-4)
- मरुभूमि की यात्रा और शिकायतें (Ch. 10-12)
- कनान की खोज और विद्रोह (Ch. 13-14)
- कोरह का विद्रोह (Ch. 16)
- मूसा की चूक (Ch. 20)
- सर्प और काँसे का सर्प (Ch. 21)
- दूसरी पीढ़ी – कनान की तैयारी (Ch. 26-36)
- नई जनगणना (Ch. 26)
- वारिस और संपत्ति के नियम (Ch. 27)
- बलिदान और पर्वों के नियम (Ch. 28-29)
- मिद्यानियों पर विजय (Ch. 31)
- गोत्रों की विरासत (Ch. 32-36)
4. मुख्य विषय (Major Themes)
- विश्वास बनाम अविश्वास: पहली पीढ़ी अविश्वास के कारण प्रतिज्ञा खो बैठी।
- परमेश्वर की पवित्रता और न्याय: पाप के लिए दंड, पर पश्चाताप करने पर करुणा।
- नेतृत्व: मूसा, हारून, यहोशू जैसे नेताओं का उदाहरण।
- उद्धार और मसीह का प्रतिबिंब:
- काँसे का सर्प → मसीह क्रूस पर (यूहन्ना 3:14-15)।
- मन्ना और पानी → मसीह जीवित रोटी और जीवित जल।
- बलिदान और पर्व → मसीह का पूर्ण बलिदान।
5. महत्वपूर्ण पद (Key Verses)
- गिनती 6:24-26 – “यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रक्षा करे…” (याजकीय आशीर्वाद)।
- गिनती 14:18 – “यहोवा धीरजवन्त और करुणामय है, अधर्म और अपराध क्षमा करता है, तौभी अपराधियों को दोषी ठहराए बिना नहीं छोड़ता।”
- गिनती 23:19 – “परमेश्वर मनुष्य नहीं कि वह झूठ बोले…”
- गिनती 21:9 – काँसे के सर्प की ओर देखने से जीवन मिला।
6. प्रमुख शिक्षाएँ (Key Doctrinal Teachings)
- विश्वास की कमी परमेश्वर की योजनाओं को विलंबित करती है।
- परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ अटल हैं, पर अविश्वासी उसमें भाग नहीं ले सकते।
- मसीह क्रूस पर काँसे के सर्प के समान उद्धार का एकमात्र मार्ग है।
- परमेश्वर का न्याय और दया दोनों उसके स्वभाव का हिस्सा हैं।
7. विशेषताएँ (Unique Features)
- दो बार जनगणना – असफल और सफल पीढ़ी का अंतर।
- काँसे का सर्प – उद्धार का स्पष्ट चित्रण।
- बलाम की भविष्यवाणियाँ – मसीहा के बारे में (गिनती 24:17)।
- मरुभूमि का 40 साल का अनुभव – विश्वासियों के लिए आज भी चेतावनी और शिक्षा।
8. व्यावहारिक अनुप्रयोग (Practical Applications)
- हमें अविश्वास और शिकायत के बजाय विश्वास और आज्ञाकारिता चुननी चाहिए।
- परमेश्वर कभी असफल नहीं होता, पर मनुष्य का अविश्वास उसे आशीष से वंचित कर सकता है।
- मसीह में विश्वास करने से ही जीवन और उद्धार संभव है।
- पिछले अनुभव और असफलताओं से सीखकर हमें परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ रहना चाहिए।
9. सारांश (Summary)
गिनती इस्राएल की मरुभूमि की यात्रा, उनकी असफलताओं और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का विवरण देती है। यह दिखाती है कि कैसे अविश्वास एक पूरी पीढ़ी को प्रतिज्ञा से वंचित कर देता है, पर परमेश्वर नई पीढ़ी को उठाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करता है। काँसे का सर्प, मन्ना, जल और बलिदान – सब यीशु मसीह की ओर संकेत करते हैं।

