1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)
फिलिप्पियों की पुस्तक पौलुस प्रेरित द्वारा फिलिप्पी की कलीसिया को लिखी गई एक प्रेमपूर्ण और आनंद से भरी हुई पत्री है। यह पत्री मुख्य रूप से मसीही विश्वासियों को आत्मिक आनन्द, नम्रता और मसीह-केंद्रित जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
लेखक:
पौलुस प्रेरित (फिलिप्पियों 1:1)
लिखने का समय:
लगभग 61-62 ईस्वी (रोम में कैद के दौरान लिखी गई)
मुख्य उद्देश्य:
विश्वासियों को हर परिस्थिति में आनन्दित रहना सिखाना।
नम्रता और प्रेम में बढ़ने के लिए प्रेरित करना।
मसीह को अपने जीवन का केंद्र बनाना।
सुसमाचार प्रचार में स्थिर और विश्वासयोग्य बने रहना।
2️ मुख्य विषय (Themes of Philippians)
मसीह में आनन्द – कठिनाइयों में भी परमेश्वर में आनन्दित रहना।
नम्रता और सेवा का महत्व – मसीह की दीनता को अपनाना।
मसीही जीवन में प्रगति – विश्वास में बढ़ते रहना।
संघर्ष और सताव में स्थिर रहना – मसीह के लिए कष्ट उठाना।
परमेश्वर पर भरोसा – चिंता छोड़कर परमेश्वर की शांति में रहना।
3️ पुस्तक की संरचना (Outline of Philippians)
खंड | विवरण | अध्याय |
भाग 1 | पौलुस की धन्यवाद और प्रार्थना | 1 |
भाग 2 | मसीह का नम्रता भरा उदाहरण | 2 |
भाग 3 | मसीही जीवन की दौड़ | 3 |
भाग 4 | चिंता रहित जीवन और परमेश्वर की शांति | 4 |
4️ प्रमुख शिक्षाएँ (Key Teachings in Philippians)
फिलिप्पियों 1:6 – “जो काम उसने तुम में आरम्भ किया है, वह उसे मसीह यीशु के दिन तक पूरा भी करेगा।”
फिलिप्पियों 1:21 – “क्योंकि मेरे लिए जीवित रहना मसीह है, और मरना लाभ है।”
फिलिप्पियों 2:5-7 – “तुम्हारे बीच वही मन हो, जो मसीह यीशु का भी था, जिसने अपने को दीन किया।”
फिलिप्पियों 3:14 – “मैं निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि उस इनाम को प्राप्त करूँ।”
फिलिप्पियों 4:4 – “प्रभु में सदा आनन्दित रहो; फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो।”
फिलिप्पियों 4:6-7 – “किसी भी बात की चिंता मत करो, परन्तु अपनी प्रार्थनाओं और विनतियों के द्वारा धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करो।”
फिलिप्पियों 4:13 – “मैं मसीह के द्वारा सब कुछ कर सकता हूँ, जो मुझे सामर्थ देता है।”
5️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from Philippians)
परमेश्वर पर भरोसा रखने से सच्चा आनन्द मिलता है।
नम्रता और सेवा के द्वारा हम मसीह का अनुसरण कर सकते हैं।
मसीही जीवन में निरंतर बढ़ते रहना आवश्यक है।
हमारे जीवन का केंद्र मसीह होना चाहिए।
चिंता और भय को छोड़कर परमेश्वर की शांति में रहना चाहिए।
6️ प्रमुख पात्र (Key Figures in Philippians)
पौलुस प्रेरित – इस पत्री के लेखक, जिन्होंने कैद में रहते हुए भी आनंदित रहने का उदाहरण दिया।
फिलिप्पी के विश्वासियों – वे मसीही जो पौलुस की सेवा में सहभागी थे।
तीमुथियुस – पौलुस का सहायक, जिसे उन्होंने नम्रता और सेवा के लिए सराहा।
इपफ्रदीतुस – एक विश्वासी जिसने पौलुस की सहायता की और बीमारी से चंगा हुआ।
यीशु मसीह – जो सच्चे आनंद, नम्रता और उद्धार का स्रोत हैं।
7️ मसीही भविष्यवाणियाँ (Messianic Prophecies in Philippians)
फिलिप्पियों 2:9-11 – “इसलिए परमेश्वर ने उसे अत्यन्त महान भी किया और उसे वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि यीशु के नाम पर हर एक घुटना टेके… और हर एक जीभ यह स्वीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है।” – यह मसीह की महिमा और उनके प्रभुत्व की भविष्यवाणी है।
फिलिप्पियों 3:20-21 – “हमारा नगर तो स्वर्ग में है, जहाँ से हम उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह की बाट जोह रहे हैं।” – यह मसीह के दूसरे आगमन की ओर संकेत करता है।
8️ निष्कर्ष (Conclusion)
फिलिप्पियों की पुस्तक हमें सिखाती है कि सच्चा आनंद परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि मसीह में हमारे संबंध पर निर्भर करता है। यह पत्री हमें नम्रता, सेवा, विश्वास में बढ़ने, चिंता छोड़कर परमेश्वर की शांति में रहने और आत्मिक दृष्टि से स्थिर रहने की प्रेरणा देती है।
अध्ययन प्रश्न (Study Questions)
1️ पौलुस ने फिलिप्पियों को आनंदित रहने के लिए क्यों कहा (फिलिप्पियों 4:4)?
2️ मसीह का नम्रता भरा उदाहरण (फिलिप्पियों 2:5-11) हमें क्या सिखाता है?
3️ “मैं मसीह के द्वारा सब कुछ कर सकता हूँ” (फिलिप्पियों 4:13) का क्या अर्थ है?
4️ फिलिप्पियों 3:20-21 के अनुसार, मसीही विश्वासियों की नागरिकता कहाँ है?