तीतुस की पुस्तक का सर्वेक्षण (Survey of the Book of Titus)

1️ पुस्तक का परिचय (Introduction)

तीतुस की पत्री पौलुस प्रेरित द्वारा लिखी गई “रचनात्मक पत्रियों” (Pastoral Epistles) में से एक है। यह पत्री क्रेते द्वीप के चर्चों के आत्मिक संगठन और नेतृत्व की दिशा में निर्देश देने के लिए लिखी गई थी। इसमें पौलुस ने तीतुस को यह सिखाया कि कैसे अगुवों का चुनाव किया जाए, कैसे झूठी शिक्षाओं से बचा जाए, और कैसे मसीही विश्वासियों को अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित किया जाए।

📌 लेखक:

✅ पौलुस प्रेरित (तीतुस 1:1)

📌 लिखने का समय:

✅ लगभग 63-66 ईस्वी (1 तीमुथियुस के समान समय में)

📌 मुख्य उद्देश्य:

✅ चर्चों में आत्मिक नेतृत्व स्थापित करना।
✅ झूठे शिक्षकों से बचाव की चेतावनी देना।
✅ अच्छे कर्मों और स्वस्थ शिक्षाओं की आवश्यकता को समझाना।
✅ मसीही जीवन में अनुशासन, भक्ति और आत्मिक परिपक्वता की शिक्षा देना।


2️ मुख्य विषय (Themes of Titus)

✅ सच्चे आत्मिक अगुआ के गुणएक अगुआ को चरित्रवान, नीतिपूर्ण और आत्मिक रूप से परिपक्व होना चाहिए।
✅ झूठी शिक्षाओं से बचावविश्वासियों को सच्चे सिद्धांतों में स्थिर रहना चाहिए।
✅ अच्छे कर्मों का महत्वकेवल विश्वास ही नहीं, बल्कि अच्छे कर्म भी मसीही जीवन का अनिवार्य भाग हैं।
✅ अनुशासित और पवित्र जीवनपरमेश्वर के लोग संतोषी, भले और आत्मनियंत्रित होने चाहिए।


3️ पुस्तक की संरचना (Outline of Titus)

खंड

विवरण

अध्याय

भाग 1

योग्य अगुवों के गुण और झूठे शिक्षकों से सावधान रहना

1

भाग 2

विभिन्न समूहों के लिए आत्मिक शिक्षाएँ

2

भाग 3

अच्छे कर्मों और आत्मिक परिपक्वता का महत्व

3


4️ प्रमुख शिक्षाएँ (Key Teachings in Titus)

📍 तीतुस 1:7-9 – “क्योंकि एक अगुवा को परमेश्वर का भण्डारी होने के नाते निर्दोष होना चाहिए…” (एक सच्चे अगुआ के गुण)।
📍 तीतुस 2:11-12 – “क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह, जो उद्धार देता है, सब मनुष्यों पर प्रकट हुआ है…” (मसीही जीवन में पवित्रता की आवश्यकता)।
📍 तीतुस 3:5 – “उसने हमारा उद्धार हमारे किए हुए धर्म के कामों के कारण नहीं, परंतु अपनी दया से किया।” (उद्धार केवल अनुग्रह से होता है)।
📍 तीतुस 3:8 – “भरोसेमंद बात यह है, और मैं चाहता हूँ कि तू इन बातों का ज़ोर देकर प्रचार करे, कि जिन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया है, वे अच्छे कामों में लगे रहने का ध्यान रखें।” (विश्वास के साथ-साथ अच्छे कर्म भी आवश्यक हैं)।


5️ आत्मिक शिक्षाएँ (Spiritual Lessons from Titus)

✅ एक अगुआ को चरित्रवान और आत्मिक रूप से मजबूत होना चाहिए।
✅ झूठी शिक्षाओं से बचना आवश्यक है, क्योंकि वे लोगों को भटकाती हैं।
✅ मसीही विश्वास केवल सैद्धांतिक नहीं होना चाहिए, बल्कि अच्छे कर्मों में भी प्रकट होना चाहिए।
✅ बुढ़े, जवान, पुरुष, स्त्रियाँ – सभी को मसीह के अनुसार पवित्र और अनुशासित जीवन जीना चाहिए।
✅ हमारा उद्धार हमारे कर्मों के कारण नहीं, बल्कि परमेश्वर के अनुग्रह और दया से होता है।


6️ प्रमुख पात्र (Key Figures in Titus)

🔹 पौलुस प्रेरितइस पत्री के लेखक, जिन्होंने तीतुस को आत्मिक निर्देश दिए।
🔹 तीतुसपौलुस का सहकर्मी, जिसे क्रेते द्वीप में चर्च की व्यवस्था के लिए नियुक्त किया गया था।
🔹 झूठे शिक्षकवे लोग जो चर्चों में झूठी शिक्षाएँ फैला रहे थे, जिनके प्रति पौलुस ने चेतावनी दी (तीतुस 1:10-11)


7️ मसीही भविष्यवाणियाँ (Messianic Prophecies in Titus)

📍 तीतुस 2:13 – “हम उस धन्य आशा की, और अपने महान परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रकट होने की बाट जोह रहे हैं।” – यह मसीह के पुनः आगमन की भविष्यवाणी है।
📍 तीतुस 3:6 – “जिसे उसने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर बहुतायत से उंडेला।” – यह पुष्टि करता है कि उद्धार केवल मसीह के द्वारा संभव है।


8️ निष्कर्ष (Conclusion)

तीतुस की पुस्तक हमें सिखाती है कि एक मसीही अगुआ को अनुशासित, नीतिपूर्ण और आत्मिक रूप से परिपक्व होना चाहिए। यह पुस्तक हमें यह भी सिखाती है कि मसीही विश्वास केवल ज्ञान या सिद्धांत नहीं है, बल्कि अच्छे कर्मों और पवित्र जीवन में प्रकट होना चाहिए।


🔎 अध्ययन प्रश्न (Study Questions)

1️ तीतुस 1:7-9 के अनुसार एक योग्य अगुआ के कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
2️
 तीतुस 2:11-12 हमें मसीही जीवन के बारे में क्या सिखाता है?
3️
 तीतुस 3:5 के अनुसार उद्धार किन चीजों से प्राप्त नहीं होता?
4️
 तीतुस 3:8 में अच्छे कर्मों की क्या भूमिका बताई गई है?
5️
 झूठे शिक्षकों के प्रति पौलुस की चेतावनी का क्या महत्व है? 

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