प्रस्तावना (Introduction)
कलीसिया (Church) केवल एक इमारत या संगठन नहीं है; यह परमेश्वर के द्वारा बुलाए गए विश्वासियों का एक पवित्र समुदाय है। बाइबल में “कलीसिया” के लिए प्रयुक्त ग्रीक शब्द “एक्लेसिया” (Ekklesia) का अर्थ है “बुलाए हुए लोग”—अर्थात वे लोग जिन्हें परमेश्वर ने संसार से निकालकर अपने उद्देश्य के लिए अलग किया है।
यीशु मसीह ने कहा:
“मैं इस चट्टान पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।” (मत्ती 16:18)
इस अध्ययन में हम कलीसिया की प्रकृति, इसके बाइबलीय लक्षण, और इसकी ईश्वरीय使命 को विस्तार से देखेंगे।
1. कलीसिया की प्रकृति (Nature of the Church)
बाइबल हमें कलीसिया की प्रकृति को समझाने के लिए कई रूपक (Metaphors) देती है।
1.1 कलीसिया मसीह की देह है (The Church as the Body of Christ)
- “और उसी ने सब वस्तुएँ उसके पाँव तले कर दीं, और उसे सारी कलीसिया का सिर ठहराया, जो उसकी देह है।” (इफि. 1:22-23)
- मसीह इसका सिर (Head) है, और हम इसके अंग (Members) हैं।
- हर सदस्य को अपनी भूमिका निभानी है ताकि पूरी देह कार्य कर सके (1 कुरिं. 12:12-27)।
1.2 कलीसिया परमेश्वर का मंदिर है (The Church as the Temple of God)
- “तुम जीवते परमेश्वर की कलीसिया हो, क्योंकि परमेश्वर का मंदिर पवित्र है, और वह तुम हो।” (1 कुरिं. 3:16-17)
- इसका अर्थ है कि परमेश्वर की आत्मा कलीसिया में वास करती है और उसे पवित्रता में चलना चाहिए।
1.3 कलीसिया मसीह की दुल्हन है (The Church as the Bride of Christ)
- “क्योंकि मैं ने तुम्हारी सगाई एक ही पति से कर दी है, कि तुम्हें पवित्र कुँवारी की नाईं मसीह के पास उपस्थित करूँ।” (2 कुरिं. 11:2)
- मसीह और कलीसिया का संबंध प्रेम, भक्ति, और आत्मिक एकता का है (इफि. 5:25-27)।
2. कलीसिया के लक्षण (Marks of the Church)
बाइबलीय कलीसिया को पहचानने के लिए चार मुख्य लक्षण होते हैं।
2.1 एकता (Unity)
- “हम सब को विश्वास और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एकता प्राप्त होती जाए।” (इफि. 4:13)
- सच्ची कलीसिया मसीह में एकजुट होती है, जाति, भाषा, और संस्कृतियों से परे होकर।
2.2 पवित्रता (Holiness)
- “परमेश्वर ने तुम्हें पवित्र बुलाने के लिए चुना है।” (1 पतरस 1:15-16)
- कलीसिया का उद्देश्य संसार से अलग रहकर मसीह के चरित्र को प्रतिबिंबित करना है।
2.3 सार्वभौमिकता (Catholicity – Universality)
- “हर जाति, हर कुल, और हर भाषा के लोग कलीसिया का हिस्सा हैं।” (प्रका. 7:9)
- मसीह का सुसमाचार सभी लोगों के लिए है।
2.4 प्रेरितिकता (Apostolicity – Faithfulness to the Apostles’ Teaching)
- “वे प्रेरितों के उपदेशों में स्थिर रहते थे।” (प्रेरितों 2:42)
- सच्ची कलीसिया वही है जो प्रेरितों की शिक्षा पर बनी रहती है।
3. कलीसिया की使命 (Mission of the Church)
कलीसिया का मुख्य उद्देश्य परमेश्वर के राज्य का विस्तार करना और संसार में यीशु मसीह की गवाही देना है।
3.1 सुसमाचार प्रचार (Evangelism – The Great Commission)
- “इसलिए तुम जाकर सब जातियों को चेला बनाओ।” (मत्ती 28:19-20)
- कलीसिया को पूरी दुनिया में यीशु का संदेश फैलाना है।
3.2 आराधना (Worship – Glorifying God)
- “परमेश्वर आत्मा है, और जितने उसकी आराधना करते हैं, आत्मा और सच्चाई से करनी चाहिए।” (यूहन्ना 4:24)
- कलीसिया का एक महत्वपूर्ण कार्य परमेश्वर की आराधना करना है।
3.3 आत्मिक संगति (Fellowship – Building the Body of Christ)
- “वे आपस में संगति रखते थे, रोटी तोड़ते और प्रार्थना करते थे।” (प्रेरितों 2:42)
- कलीसिया को विश्वासियों के लिए आत्मिक परिवार बनाना है।
3.4 सेवा और करुणा (Service & Compassion)
- “जो तुम्हारे बीच बड़ा बनना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने।” (मरकुस 10:45)
- कलीसिया को गरीबों, जरूरतमंदों और बीमारों की सेवा करनी चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
कलीसिया परमेश्वर की योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह केवल एक संगठन नहीं, बल्कि मसीह का जीवित शरीर है, जिसे संसार में उसके प्रेम, अनुग्रह और सत्य को प्रकट करने के लिए बुलाया गया है।
यीशु ने अपने अनुयायियों को आश्वासन दिया:
“मैं तुम्हारे साथ सदैव बना रहूँगा, जगत के अंत तक।” (मत्ती 28:20)
इसलिए, प्रत्येक विश्वासी को कलीसिया का एक सक्रिय और समर्पित अंग बनना चाहिए, ताकि हम परमेश्वर की महिमा के लिए उसके को पूरा कर सकें।
सभी महिमा हमारे प्रभु यीशु मसीह को!