भारत का प्राचीन इतिहास कई परतों में बसा हुआ है—एक ओर पौराणिक कथाएं हैं, जो राम, कृष्ण, शिव, विष्णु जैसे देवी-देवताओं की महिमा गाती हैं, तो दूसरी ओर ठोस पुरातात्विक साक्ष्य हैं जो एक असाधारण लेकिन अलग तरह की सभ्यता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इन्हीं में से एक है सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हम आज हड़प्पा सभ्यता के नाम से जानते हैं।
यह सभ्यता न केवल समय के हिसाब से अत्यंत प्राचीन (3300–1300 ई.पू.) थी, बल्कि इसकी नगर योजना, जल निकासी व्यवस्था, व्यापारिक प्रणाली और सामाजिक संगठन इतने विकसित थे कि यह मिस्र और मेसोपोटामिया जैसी समकालीन सभ्यताओं के समकक्ष खड़ी होती है—कई मायनों में तो उनसे भी आगे।
परंतु जब हम इन पुरातात्विक स्थलों—हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी आदि—का अध्ययन करते हैं, तो एक बात अत्यंत आश्चर्यजनक लगती है: यहाँ कहीं भी वह धार्मिक परंपरा दिखाई नहीं देती जिसे आज ‘हिंदू धर्म‘ के रूप में जाना जाता है। न शिवलिंग की पूजा के स्पष्ट प्रमाण, न राम-कृष्ण की मूर्तियाँ, न मंदिर, न यज्ञ वेदियाँ।
‘हिंदू‘ शब्द फारसी मूल का है, जो सिंधु नदी से निकला। प्राचीन ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख नहीं। पहले इसे ‘सनातन धर्म’ या ‘ब्राह्मण धर्म’ कहा जाता था। अंग्रेजों ने इसे एक वर्गीकृत धर्म के रूप में Colonial Census में दर्ज किया।
तो क्या यह माना जाए कि हिंदू धर्म का वर्तमान स्वरूप सिंधु घाटी सभ्यता के समय प्रचलित नहीं था? या फिर यह परंपरा बाद में, विशेष रूप से वैदिक काल और फिर पुराणिक युग में विकसित हुई?
इस लेख में हम इन्हीं सवालों की पड़ताल करेंगे। हम देखेंगे:
• हड़प्पा सभ्यता का भूगोल और कालक्रम क्या था?
• वहां किस प्रकार की धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधियाँ प्रचलित थीं?
• क्या यह सभ्यता वैदिक आर्यों से जुड़ी थी या उससे पहले की थी?
• क्या आज के हिंदू देवी-देवताओं की पूजा का कोई साक्ष्य उस काल में मिलता है?
• और अंततः, क्या यह संकेत करता है कि हिंदू धर्म, जैसा कि आज हम जानते हैं, वह इतिहास की कई संस्कृतियों और विश्वासों का मिश्रित और विकसित स्वरूप है?
हड़प्पा की सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता)
हड़प्पा की सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता) अपने समय की सबसे विस्तृत और संगठित सभ्यताओं में से एक थी। इसका विस्तार पश्चिम में अफगानिस्तान के निकट से लेकर पूर्व में गंगा-यमुना के मैदानों, उत्तर में जम्मू-कश्मीर के इलाके, और दक्षिण में गुजरात-महाराष्ट्र तक फैला हुआ था।
कुल विस्तार का अनुमान:
- क्षेत्रफल: लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर
- देश: आज के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के हिस्सों में फैली हुई
- विश्व की सबसे बड़ी प्राचीन सभ्यताओं में से एक, जो मिस्र और मेसोपोटामिया से कहीं अधिक फैलाव में थी
हड़प्पा सभ्यता का भौगोलिक विस्तार
क्षेत्र | वर्तमान स्थान | प्रमुख स्थल |
पश्चिम | बलूचिस्तान (पाकिस्तान), अफगान सीमा | सुत्कागेन-दोर (ईरान सीमा के पास) |
उत्तर | जम्मू-कश्मीर, हिमाचल | मानसर, मांडा (जम्मू), रूपनगर (पंजाब) |
पूर्व | उत्तर प्रदेश | अलमगीरपुर (मेरठ), हस्तिनापुर |
दक्षिण | महाराष्ट्र, गुजरात | दAimabad (महाराष्ट्र), लोथल, धोलावीरा (गुजरात) |
कुछ प्रमुख हड़प्पा स्थलों की सूची:
स्थल | वर्तमान राज्य | विशेषता |
हड़प्पा | पंजाब, पाकिस्तान | पहला खोजा गया स्थल |
मोहनजोदड़ो | सिंध, पाकिस्तान | महान स्नानागार |
लोथल | गुजरात | प्राचीन बंदरगाह |
धोलावीरा | कच्छ, गुजरात | पूर्ण नगरीय योजना |
कालीबंगा | राजस्थान | जले हुए खेत, पूर्व नियोजित बसाहट |
राखीगढ़ी | हरियाणा | सबसे बड़ा स्थल (आधुनिक भारत में) |
बनवाली | हरियाणा | कृषि और व्यापार का केंद्र |
चन्हूदड़ो | पाकिस्तान | मनकों और वस्त्रों का उत्पादन |
अलमगीरपुर | उत्तर प्रदेश | सभ्यता का पूर्वी छोर |
“अगर हिन्दू देवी-देवता वास्तव में ऐतिहासिक और पूजनीय अस्तित्व रखते, तो क्या सिंधु घाटी (हड़प्पा-मोहनजोदड़ो) जैसी एक विकसित सभ्यता में उनके स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलने चाहिए थे?”
सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा-मोहनजोदड़ो) के प्रमाण:
- कोई स्पष्ट हिंदू देवता की मूर्ति नहीं: अब तक की खुदाई में ना शिव, ना विष्णु, ना ब्रह्मा, ना राम, ना कृष्ण, ना लक्ष्मी, ना दुर्गा जैसी कोई विशिष्ट हिन्दू देवता की मूर्ति नहीं मिली।
- एकमात्र अपवाद: एक “योगी मुद्रा में बैठे पुरुष” की मुहर पाई गई है, जिसे कुछ लोग “पशुपति” कह कर शिव से जोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन:
- वह भी एक सिद्ध अनुमान है, उसका कोई पुष्ट वर्णन नहीं मिलता।
- वह चित्र विष्णु, ब्रह्मा या अन्य देवताओं से बिल्कुल मेल नहीं खाता।
- उसमें कोई “त्रिशूल”, “साँप”, या “शिवलिंग” जैसे चिन्ह नहीं हैं जिन्हें शिव से सीधे जोड़ा जा सके।
- लिपि (इंडस स्क्रिप्ट): आज तक सिंधु लिपि का पूर्ण रूप से पाठ नहीं किया जा सका है। उसमें किसी देवी-देवता के नाम या पूजा का वर्णन नहीं मिला।
- कोई मंदिर, यज्ञ स्थल, या मूर्तिपूजा का प्रमाण नहीं: ना कोई मंदिर मिला, ना मूर्तियों की पूजा के सबूत।
· हिन्दू देवी-देवताओं की अवधारणा बाद में विकसित हुई: यह दर्शाता है कि शिव, विष्णु, राम, कृष्ण आदि की पूजा की शुरुआत वैदिक युग के बाद—ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों और पुराणों के समय में हुई।
· सिंधु घाटी की धर्म व्यवस्था अलग थी: शायद वे प्रकृति, जल, अग्नि, और मातृ देवी की पूजा करते थे, जैसा कि कुछ स्त्री मूर्तियों से संकेत मिलता है।
आर्य कौन थे?
“आर्य” एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है: “श्रेष्ठ”, “सभ्य”, “सम्मानित” या “महान जाति का”।
यह शब्द ऋग्वेद, अवेस्टा (ईरानी ग्रंथ), और प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाया जाता है।
आर्य खुद को “आर्य जाति” कहकर बाकी लोगों से अलग पहचानते थे।
आर्य कहाँ से आए थे?
यह आज भी एक विवादित विषय है, लेकिन दो प्रमुख सिद्धांत हैं:
(A) आर्य आक्रमण सिद्धांत (Aryan Invasion Theory)
- यह सिद्धांत कहता है कि लगभग 1500 ई.पू. के आसपास आर्य मध्य एशिया (Kazakhstan, Iran) से भारत में घोड़े और रथों के साथ आए।
- उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा) को हरा दिया या उसमें घुल-मिल गए।
- इसके पक्ष में यह तर्क दिए जाते हैं:
- संस्कृत और यूरोपीय भाषाओं की समानता (Indo-European family)
- घोड़े और रथ के प्रमाण सिंधु सभ्यता में नहीं मिलते लेकिन वेदों में बहुत मिलते हैं।
- ऋग्वेद में “दस्यु” जैसे शब्द मिलते हैं जो आर्यों के शत्रु कहे गए हैं।
(B) आर्य प्रवास सिद्धांत (Aryan Migration Theory)
- इसमें कहा गया है कि आर्य किसी आक्रमणकारी की तरह नहीं, बल्कि धीरे-धीरे भारत आए और स्थानीय लोगों के साथ मिले।
- उन्होंने वैदिक संस्कृति फैलाई, लेकिन हड़प्पा जैसी पूर्ववर्ती सभ्यताओं को नष्ट नहीं किया।
3. आर्य कौन सी भाषा बोलते थे?
- वे वैदिक संस्कृत बोलते थे — जो आज की संस्कृत से अधिक पुरानी और लयात्मक थी।
- यही भाषा बाद में संस्कृत शास्त्रों, वेदों, उपनिषदों, और पुराणों की आधार बनी।
4. आर्य जीवनशैली और धर्म क्या था?
- आर्य घुमंतू (nomadic) से धीरे-धीरे कृषक समाज बने।
- वे:
- अग्नि, इंद्र, वरुण, सोम, वायु आदि की पूजा करते थे।
- यज्ञ करते थे, घी चढ़ाते थे, वेदों का पाठ करते थे।
- घोड़ा, रथ, गाय और अग्नि इनके लिए पवित्र थे।
मूर्तिपूजा नहीं थी।
शिव, विष्णु, गणेश जैसे देवताओं का उल्लेख वैदिक काल में नहीं मिलता।
इससे स्पष्ट होता है कि आज का “हिंदू धर्म” आर्यों की वैदिक परंपरा से बहुत अलग रूप में विकसित हुआ।
तो क्या आर्य भारत के मूल निवासी थे?
यह भी विवाद का विषय है:
- कुछ इतिहासकार कहते हैं: वे बाहर से आए और भारत में संस्कृति लाई।
- कुछ मानते हैं: वे यहीं के थे, और भारतीय ही थे।
- DNA अध्ययन कहते हैं:
भारतीय जनसंख्या में ANI (Ancestral North Indians) और ASI (Ancestral South Indians) दोनों की मिश्रित विरासत है, जिससे आर्य एक बाहरी प्रभाव की संभावना दिखती है।
“आर्य” एक सभ्यता, भाषा और धार्मिक दृष्टिकोण का नाम था, न कि एक जाति या धर्म का।
उन्होंने वेदों की रचना की, लेकिन मूर्तिपूजा और पुराणिक देवताओं से उनका कोई सीधा संबंध नहीं था।
वर्तमान “हिंदू धर्म” आर्यों की वैदिक संस्कृति, हड़प्पा सभ्यता और बाद की पौराणिक धारणाओं का मिश्रण है।
हड़प्पा सभ्यता का कालक्रम (Chronology of Harappan Civilization)
- प्रारंभिक हड़प्पा काल (Early Harappan Period):
3300–2600 BCE
- इस काल में बस्तियाँ बसनी शुरू हुईं।
- कृषि, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन और शुरुआती व्यापार विकसित हुआ।
- परिपक्व हड़प्पा काल (Mature Harappan Period):
2600–1900 BCE
- यह हड़प्पा सभ्यता का स्वर्ण युग था।
- प्रमुख नगर: मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा, राखीगढ़ी आदि।
- विकसित नगर योजना, जल निकासी, लेखन प्रणाली, व्यापार, कला और संस्कृति।
- उत्तर-हड़प्पा काल (Late Harappan Period):
1900–1300 BCE
- नगरों का पतन शुरू हो गया।
- व्यापार ठप हुआ, लेखन लुप्त हुआ, और लोग छोटे गाँवों में बसने लगे।
पतन के संभावित कारण:
- पर्यावरणीय परिवर्तन (सूखा, नदियों का मार्ग बदलना जैसे सरस्वती का लुप्त हो जाना)।
- बाहरी आक्रमण (आर्यों से संबंधित कुछ सिद्धांत)।
- आंतरिक विघटन और सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता।
हड़प्पा सभ्यता लगभग 2000 वर्षों तक अस्तित्व में रही, लेकिन इसके उत्कर्ष का समय लगभग 700 वर्षों (2600–1900 BCE) तक था। यह दुनिया की सबसे प्राचीन और योजनाबद्ध शहरी सभ्यताओं में से एक थी, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि इस सभ्यता से जुड़े स्थलों पर किसी भी आधुनिक हिन्दू देवी-देवता की स्पष्ट पूजा के प्रमाण नहीं मिले हैं।

