1. भूमिका: यहूदी विवाह का महत्व
यहूदी विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक पवित्र वाचा (Covenant) है। यह विवाह परमेश्वर द्वारा स्थापित एक पवित्र संबंध है, जिसमें पति-पत्नी के बीच प्रेम, निष्ठा और जिम्मेदारियों को महत्वपूर्ण माना जाता है। यहूदी विवाह व्यवस्था पारिवारिक, धार्मिक और सामाजिक मूल्यों पर आधारित होती है। यहूदी विवाह प्रणाली मसीह के दूसरे आगमन से भी गहराई से जुड़ी हुई है और उसे प्रतिबिंबित करती है। इस पाठ में हम यहूदी विवाह के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझेंगे।
2. यहूदी विवाह की प्रक्रिया
(i) विवाह की तैयारी
- शादी की व्यवस्था (Shidduch): विवाह के लिए वर-वधू का चयन पारिवारिक सहमति से होता था।
- मंगनी (Kiddushin या Erusin): विवाह का पहला चरण, जिसमें पति-पत्नी कानूनी रूप से बंधन में बंध जाते थे।
- मूल्य और उपहार: दूल्हा दुल्हन के पिता को महर (Bride Price) देता था, जो विवाह की प्रतिबद्धता दर्शाता था।
- विवाह अनुबंध (Ketubah): एक लिखित अनुबंध, जिसमें पति की ज़िम्मेदारियाँ और पत्नी के अधिकार होते थे।
(ii) विवाह समारोह
- कुबाह (Chuppah): शादी का मुख्य अनुष्ठान एक चंदोवे के नीचे होता था, जो परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक है।
- विवाह के वचन: दूल्हा और दुल्हन विवाह प्रतिज्ञाएँ लेते थे।
- अंगूठी का आदान-प्रदान: पति पत्नी को अंगूठी पहनाकर विवाह को आधिकारिक रूप से स्वीकार करता था।
- शराब का प्याला: विवाह आशीर्वाद के रूप में वधू और वर एक साथ शराब पीते थे।
- गिलास तोड़ने की रस्म: यह यरूशलेम के मंदिर के विनाश की याद दिलाने के लिए किया जाता था।
(iii) विवाह के बाद की परंपराएँ
- सप्ताह भर का उत्सव: विवाह के बाद सात दिनों तक दावत और उत्सव मनाया जाता था।
- पति की जिम्मेदारियाँ: पति को पत्नी का भरण-पोषण और सुरक्षा देने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता था।
- संतानोत्पत्ति: विवाह का एक प्रमुख उद्देश्य संतान उत्पन्न करना और यहूदी धर्म को आगे बढ़ाना था।
3. यहूदी विवाह और मसीह का दूसरा आगमन
(i) मसीह और कलीसिया का संबंध
- बाइबल में यीशु को दूल्हा और कलीसिया को दुल्हन कहा गया है। (इफिसियों 5:25-27)
- मसीह का दूसरा आगमन उस समय होगा जब वह अपनी दुल्हन (विश्वासियों) को लेने आएगा। (प्रकाशितवाक्य 19:7-9)
(ii) यहूदी विवाह और मसीह का आगमन
- मंगनी (Kiddushin) और विश्वासियों की बुलाहट: जिस प्रकार यहूदी विवाह में मंगनी के समय दूल्हा और दुल्हन पहले से जुड़ जाते थे, उसी प्रकार जब कोई मसीह पर विश्वास करता है, वह उससे आत्मिक रूप से जुड़ जाता है। (2 कुरिन्थियों 11:2)
- दूल्हे की वापसी: यहूदी परंपरा में दूल्हा अपनी दुल्हन को लेने के लिए लौटता था, उसी प्रकार मसीह अपने लोगों को लेने के लिए पुनः आएगा। (यूहन्ना 14:2-3)
- कुबाह और स्वर्गीय भोज: विवाह की कुबाह परमेश्वर की उपस्थिति को दर्शाती है और प्रकाशितवाक्य 19 में उल्लिखित मेम्ने के भोज को प्रतिबिंबित करती है।
4. यहूदी विवाह के धार्मिक और सामाजिक पहलू
(i) विवाह का धार्मिक महत्व
- विवाह परमेश्वर की योजना का हिस्सा है (उत्पत्ति 2:24)।
- पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहना चाहिए (नीतिवचन 18:22)।
- विवाह को पवित्रता और प्रेम में निभाना आवश्यक है (इफिसियों 5:25)।
(ii) यहूदी समाज में विवाह का स्थान
- विवाह को यहूदी समुदाय में जीवन का महत्वपूर्ण चरण माना जाता था।
- कुंवारेपन को आदर्श नहीं माना जाता था; विवाह को धार्मिक दायित्व समझा जाता था।
- विवाह से जुड़ी परंपराएँ परिवार और समाज को मजबूत बनाती थीं।
5. सामान्य प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: यहूदी विवाह में मंगनी (Erusin) का क्या महत्व था?
उत्तर: यह विवाह का पहला चरण था, जिसमें वर-वधू कानूनी रूप से एक-दूसरे से बंध जाते थे, लेकिन वे साथ नहीं रहते थे। (मत्ती 1:18-19)
प्रश्न 2: विवाह अनुबंध (Ketubah) क्या होता था?
उत्तर: यह एक लिखित समझौता था, जिसमें पति-पत्नी के अधिकार और कर्तव्यों का उल्लेख होता था।
प्रश्न 3: यहूदी विवाह में कुबाह (Chuppah) का क्या महत्व था?
उत्तर: यह एक चंदोवा होता था, जिसके नीचे विवाह सम्पन्न होता था और यह परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक था।
प्रश्न 4: गिलास तोड़ने की रस्म का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: यह यहूदियों के मंदिर के विनाश की याद में किया जाता था, जिससे वे हमेशा अपने इतिहास को याद रखें।
प्रश्न 5: यहूदी विवाह मसीह के दूसरे आगमन को कैसे दर्शाता है?
उत्तर: यह विवाह उस आत्मिक संबंध का प्रतिबिंब है, जिसमें मसीह अपनी कलीसिया (दुल्हन) को लेने के लिए लौटेगा। (प्रकाशितवाक्य 19:7-9)
6. निष्कर्ष
यहूदी विवाह प्रणाली केवल एक सामाजिक रीति नहीं थी, बल्कि यह एक धार्मिक और नैतिक अनुबंध था, जिसमें पति-पत्नी का परमेश्वर के प्रति समर्पण और परस्पर प्रेम महत्वपूर्ण था। यह व्यवस्था न केवल यहूदी समाज को मजबूत बनाती थी, बल्कि परमेश्वर की योजना को भी प्रकट करती थी। मसीही विश्वास में भी विवाह को पवित्र और सम्माननीय माना जाता है। यह विवाह मसीह और उसकी कलीसिया के संबंध को भी दर्शाता है, जिसमें मसीह अपने विश्वासियों को लेने के लिए पुनः आएगा।