कार्य की वाचा, जिसे “कार्य के नियम” भी कहा जाता है, बाइबल में परमेश्वर द्वारा आदम के साथ स्थापित की गई एक महत्वपूर्ण वाचा है। यह वाचा आदम और उसकी वंशजों के साथ परमेश्वर का एक समझौता था, जिसमें आज्ञाकारिता के माध्यम से जीवन और आशीष का वादा था, लेकिन इसके उल्लंघन पर मृत्यु और दंड का भी प्रावधान था।
कार्य की वाचा का आधार
(i) पद जहां कार्य की वाचा दिखाई देती है:
- उत्पत्ति 2:16-17: “तब यहोवा परमेश्वर ने उस मनुष्य को आज्ञा दी और कहा, “तू वाटिका के सब वृक्षों का फल स्वतंत्र होकर खा सकता है; परंतु भले और बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना; क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा, उसी दिन अवश्य मरेगा।”
(ii) वाचा की प्रकृति:
- परमेश्वर का निर्देश: परमेश्वर ने आदम को स्पष्ट निर्देश दिया कि भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाएं।
- शर्त: आदम को आज्ञा का पालन करना था।
- पुरस्कार: आज्ञाकारिता से आदम और उसकी संतानों को अनंत जीवन और परमेश्वर के साथ सामीप्यता प्राप्त होती।
- दंड: उल्लंघन के परिणामस्वरूप पाप और मृत्यु आई।
(iii) प्रतिनिधित्व का सिद्धांत:
आदम इस वाचा में संपूर्ण मानवता का प्रतिनिधित्व कर रहा था। उसकी आज्ञाकारिता या अवज्ञा केवल उसके लिए नहीं, बल्कि उसके वंशजों के लिए भी परिणामकारी थी।
कार्य की वाचा के प्रमुख तत्व
(i) परमेश्वर की संप्रभुता:
- यह वाचा परमेश्वर द्वारा आरंभ की गई, और इसकी शर्तें परमेश्वर द्वारा निर्धारित की गईं।
(ii) मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा:
- आदम को अपनी स्वतंत्र इच्छा का उपयोग करके आज्ञा का पालन करने का अवसर दिया गया।
(iii) आज्ञाकारिता की परीक्षा:
- भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाने की आज्ञा एक नैतिक परीक्षा थी।
(iv) परिणाम:
- आशीष: आज्ञाकारिता का पालन करने पर आदम और उसकी संतानों को अदन की वाटिका में अनंत जीवन मिलता।
- दंड: फल खाने से पाप और शारीरिक तथा आत्मिक मृत्यु संसार में आई।
कार्य की वाचा का उल्लंघन
(i) आदम और हव्वा का पाप:
उत्पत्ति 3 में शैतान के प्रलोभन के कारण आदम और हव्वा ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया।
(ii) परिणाम:
- पाप: पूरी मानव जाति पाप के बंधन में आ गई। (रोमियों 5:12)
- दंड: शारीरिक मृत्यु, आत्मिक अलगाव, और परमेश्वर के साथ संबंध का टूटना।
- अदन से निष्कासन: अदन की वाटिका से आदम और हव्वा को निकाल दिया गया।
कार्य की वाचा और अनुग्रह की वाचा का संबंध
- कार्य की वाचा के विफल होने के बाद, परमेश्वर ने अनुग्रह की वाचा स्थापित की।
- जहां कार्य की वाचा मनुष्य की आज्ञाकारिता पर आधारित थी, वहीं अनुग्रह की वाचा मसीह के कार्यों और बलिदान पर निर्भर है। (यूहन्ना 3:16)
- मसीह को “दूसरा आदम” कहा गया है, जिसने अपनी आज्ञाकारिता द्वारा उद्धार की योजना पूरी की। (रोमियों 5:19)
कार्य की वाचा का मसीही जीवन में महत्व
- पाप की गंभीरता का बोध: कार्य की वाचा यह स्पष्ट करती है कि पाप कैसे मानवता को परमेश्वर से दूर करता है।
- मसीह की आवश्यकता: मसीह का बलिदान और आज्ञाकारिता हमें परमेश्वर के साथ पुनः जोड़ते हैं।
- नैतिक शिक्षा: यह वाचा हमें सिखाती है कि परमेश्वर आज्ञाकारिता की अपेक्षा करता है।
सामान्य प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: कार्य की वाचा क्या है?
उत्तर: यह परमेश्वर और आदम के बीच अदन की वाटिका में स्थापित की गई एक वाचा थी, जिसमें आदम को परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना था और अनंत जीवन प्राप्त होता।
प्रश्न 2: कार्य की वाचा का उल्लंघन क्यों हुआ?
उत्तर: आदम और हव्वा ने शैतान के प्रलोभन के कारण परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और पाप संसार में आ गया।
प्रश्न 3: क्या कार्य की वाचा आज भी लागू होती है?
उत्तर: कार्य की वाचा का नैतिक सिद्धांत लागू रहता है, लेकिन मसीह ने अनुग्रह की वाचा के माध्यम से इसे पूरा किया।
प्रश्न 4: कार्य की वाचा और अनुग्रह की वाचा में क्या अंतर है?
उत्तर: कार्य की वाचा मनुष्य की आज्ञाकारिता पर आधारित थी, जबकि अनुग्रह की वाचा मसीह के बलिदान और अनुग्रह पर आधारित है।
प्रश्न 5: कार्य की वाचा हमें क्या सिखाती है?
उत्तर: यह हमें पाप की गंभीरता, परमेश्वर की पवित्रता, और उद्धार के लिए मसीह की आवश्यकता को समझने में मदद करती है।
निष्कर्ष
कार्य की वाचा परमेश्वर और मनुष्य के बीच के पहले संबंध का प्रतीक है। इसके उल्लंघन ने मानवता को पाप के बंधन में डाल दिया, लेकिन यह मसीह की छुटकारा योजना की ओर भी इंगित करती है। यह वाचा पाप और उद्धार की योजना को समझने के लिए एक आधारभूत दृष्टिकोण प्रदान करती है।