संसार के किसी भी व्यक्ति से अगर हम पूछें की “धर्म तो बहुत हैं, देवता और ईश्वर भी बहुत हैं पर परमेश्वर कितने हैं ? तो हर कोई एक ही जवाब देगा की परमेश्वर एक ही है. यदि सबको स्वाभाविक ही ये पता है परमेश्वर एक है तो फिर लोग मूर्ति पूजा क्यों करते हैं. बाइबिल कहती है “और उन अविश्वासियों के लिये, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके। 2 कुरिन्थियों 4:4. जैसा की बाइबिल बताती है संसार का सरदार शैतान है जो परमेश्वर की बनायीं सृष्टि खासतौर कर मनुष्य जाती से घृणा करता है और नहीं चाहता की मनुष्य परमेश्वर को जानकार उनकी इच्छा पे चलकर उद्धार पाए और स्वर्ग में रहे. इसलिए शैतान मनुष्य जाती को भरमा कर परमेश्वर से दूर रखने की मंशा से नकली धर्म और ईश्वर बनाता है और लोगों को उलझाए रखता है. क्या जिस परमेश्वर ने सारी सृष्टि को बनाया उसको कोई मूर्ति में ढाल सकता है ? नहीं। क्या जिस परमेश्वर ने इतनी सुन्दर प्रकृति बनायीं उसकी सुंदरता को कोई मनुष्य अपनी कल्पना में उतार सकता है ? कभी नहीं। इसके बाद भी मनुष्य अपने हाथ से मूर्तियों को बनाता है और उनको ईश्वर करके मानता है. ये ऐसा है जैसे बनायीं हुई वस्तु अपने बनाने वाले को छोड़कर अन्य अन्य को अपना रचयिता मानकर उनकी उपासना करे. इस से स्वाभाविक ही उस वस्तु का रचनाकार क्रोधित होगा और जलन रखेगा। आइये मूर्ति पूजा के विषय में कुछ बाइबिल के आयतों को देखते हैं
तब शमूएल ने इस्राएल के सारे घराने से कहा, यदि तुम अपने पूर्ण मन से यहोवा की ओर फिरे हो, तो पराए देवताओं और अश्तोरेत देवियों को अपने बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो, तब वह तुम्हें पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाएगा।