“बाइबिल” यह नाम ग्रीक (यूनानी) शब्द बीबलिओस से आया है जिसका अर्थ है “पुस्तक”, जोकि एक उपयुक्त नाम है, क्योंकि बाइबल सभी लोगों के लिए, सभी समय के लिए आदर्श पुस्तक है। यह किसी भी अन्य पुस्तक से अलग है, और अपने आप में बहुत खास है।
बाइबल यूं तो एक पुस्तक है लेकिन इस एक पुस्तक में 66 अलग-अलग पुस्तकें हैं। इस पुस्तकों का विषय वस्तु व लेखक भिन्न भिन्न हैं। इनमें व्यवस्था की पुस्तकें, जैसे कि लेवीयव्यवस्था और व्यवस्थाविवरण; इतिहास की पुस्तकें, जैसे कि 1, 2 इतिहास और प्रेरितों के कार्य; काव्य की पुस्तकें, जैसे कि भजन संहिता और सभोपदेशक; भविष्यवाणी की पुस्तकें, जैसे कि दानिएल और प्रकाशित वाक्य; जीवनी, जैसे कि मत्ती, मरकुस, यूहन्ना; और पत्रियाँ जैसे कि रोमियों और इब्रानियों आदि शामिल हैं।
बाइबल दो मुख्य भागों में विभाजित है: पुराना नियम और नया नियम। पुराना नियम में वो पुस्तकें हैं जो यीशु मसीह के संसार मे आने से पहले लिखी गई और नए नियम मे वे जो उनके आने के बाद लिखी गई थी। संक्षेप में, पुराना नियम एक राष्ट्र इस्राएल की कहानी है, और नया नियम एक मनुष्य यीशु मसीह की कहानी है।
लगभग 40 अलग-अलग लेखकों ने बाइबल पुस्तकों को लगभग 1500 वर्षों की अवधि के दौरान लिखा। इसके लेखकों में राजा, मछुआरे, याजक, अधिकारी, किसान, चरवाहे और चिकित्सक आदि थे। बाइबल की इतनी विविधता के बाद भी इसका मुख्य विषय “मानव जाती का उद्धार” सब पुस्तकों और लेखकों में समान बना रहता है जो की अपने आप में एक अद्भुत बात है।
बाइबल की विविधता में एकता इस तथ्य के कारण है कि, अंततः, इसकी सभी पुस्तकों का लेखक एक ही है – जोकि स्वयं परमेश्वर है। बाइबल का हर एक वचन “परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है” (2 तीमुथियुस 3:16)। इसके लेखकों ने वही लिखा जो परमेश्वर ने उन्हें लिखने की प्रेरणा दी (भजन 12:6; 2 पतरस 1:21)।
आज जो बाइबल हमारे पास है वह कई पुस्तकों के चयन और मान्यता दिए जाने की एक जटिल प्रक्रिया का परिणाम है। इस प्रक्रिया को कैननाइज़ेशन के रूप में जाना जाता है, जिसमें यह निर्धारित किया जाता है कि जो पुस्तकें परमेश्वर द्वारा प्रेरित है उन्हें बाइबिल में शामिल किया जाना चाहिए। कैननाइज़ेशन को समझने से हमें बाइबिल के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को समझने में मदद मिलती है।
“कैनन” की परिभाषा : “कैनन” ग्रीक शब्द कैनोन से आया है, जिसका अर्थ है “नियम” या “मानक।”
पुस्तकों को बाइबल में शामिल करने के मानदंड: कैननाइज़ेशन की प्रक्रिया में यह निर्धारित करने के लिए कि कौन सी पुस्तकों को बाइबिल में शामिल किया जाना चाहिए, कई मानदंड लागू किये गए।
नए नियम के लिए मानदंड:
बाइबल में केवल उन्ही पुस्तकों को शामिल किया जाएगा जो यीशु मसीह के चेलों, प्रेरितों या उनके करीबी सहयोगियों द्वारा लिखी गई हों।
पुस्तकों का विषय-वस्तु मसीही समुदाय के द्वारा स्वीकृत शिक्षाओं और सिद्धांतों से मेल खाता हो।
पुस्तक का विभिन्न मसीही समुदायों द्वारा आराधना और शिक्षण में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता हो।
पुराने नियम के लिए मानदंड
पुराने नियम के लिए कैननाइज़ेशन एक क्रमिक प्रक्रिया थी जो कई शताब्दियों के दौरान हुई।
बाइबिल की पहली पाँच पुस्तकें जिन्हे तोरह भी कहा जाता है शुरू में ही आधिकारिक माना गया था। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक ये पुस्तकें हिब्रू बाइबल के मूल के रूप में स्थापित हो चुकी थीं।
भविष्यवक्ता जैसी अन्य पुस्तकों को आगे के समय में धीरे-धीरे मान्यता दी गई। यहूदी पूजा पद्धती और त्योहारों में नियमित रूप से पढ़ी और उपयोग की जाने वाली पुस्तकों को हिब्रू बाइबिल में शामिल किया गया।
अंतिम रूप: दूसरी शताब्दी CE तक यहूदी बाइबल की कैननाइज़ेशन का काम पूरा हो गया और हमें पुराने नियम की पुस्तकें मिलीं।
नए नियम का कैननाइज़ेशन भी कई शताब्दियों में हुआ। प्रारंभिक मसीही समुदायों ने प्रेरितों और उनके सहयोगियों से पत्र और लेखन सामग्री एकत्र करना और उनका उपयोग करना शुरू किया जिनमें पौलूस के पत्र, सुसमाचार और अन्य लेख शामिल थे।
इरेनियस, टर्टुलियन और ओरिजन जैसे कुछ प्रमुख चर्च फादर ने उन पुस्तकों को सूचीबद्ध किया जिनके बारे में उनका मानना था कि उन्हें नए नियम में शामिल किया जाना चाहिए।
कई परिषदों और धर्मसभाओं, जैसे कि हिप्पो की धर्मसभा (393 ई.) और कार्थेज की परिषदें (397 और 419 ई.), ने नए नियम के कैनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन परिषदों द्वारा, नए नियम की 27 पुस्तकों को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया।