अंत का समय || End Times

बाइबल के बहुत से लेखकों ने इस पर चिन्तन किया कि वर्तमान संसार का अन्त कैसे होगा तथा परमेश्वर किस प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि पर अपना नियन्त्रण स्थापित करेंगे। यहूदियों के लेखों में ये विश्वास यीशु के समय से पूर्व ही महत्त्वपूर्ण हो गए थे।

दानिय्येल की पुस्तक का लेखक बताता है कि परमेश्वर ने “अन्त का समय” ठहराया है, जब परमेश्वर के उद्देश्य मनुष्य की सभी योजनाओं और आयोजनों का स्थान ले लेंगे, और तब मृतकों का न्याय होगा (दानि 8:19)। हबक्कूक लिखता है कि परमेश्वर का समय भविष्य में आएगा, और जिन्होंने विश्वासयोग्य जीवन व्यतीत किया था वे उसके द्वारा ग्रहण किए जाएँगे (हब 2:3, 4)। “प्रभु यहोवा का दिन” नामक लेख पढ़ें।


यीशु अपने चेलों को भविष्य के एक समय के बारे में बताते है जब बड़ी भयंकर विपत्तियों इस संसार पर आएँगी तथा किस प्रकार मनुष्य का पुत्र (अर्थात्‌ स्वयं यीशु) लौटकर आएगा और अपने “चुने हुओं” को सारी पृथ्वी पर से एकत्रित करेगा (मर 13)।

यूहन्ना रचित सुसमाचार में मार्था यीशु से कहती है कि उसका भाई लाज़र “अन्तिम दिन में” जी उठेगा (यूह :11:24)। 2 तीमुथियुस की पत्री का लेखक मसीहियों को “अन्तिम दिनों” में आने वाले कठिन समय के बारे में चेतावनी देता है (2 तीमु 3:1)। 

पहली शताब्दी तक “अन्तिम समय” या “अन्तिम दिनों” के बारे में दो महत्त्वपूर्ण विश्वास थे। पहला यह कि अच्छी और बुरी शक्तियों में निर्णायक युद्ध होगा। 

दूसरा यह कि इससे पहले कि अन्तिम समय आए, परमेश्वर के लोगों को कठिन समय का सामना करना होगा। 

जो यहूदी बेबीलोन की बँधुआई से लोटे थे, उन्हें यह आशा थी कि उनका राज्य पुनर्स्थापित होकर वैसा ही शक्तिशाली हो जाएगा जैसा राजा दाऊद के समय में था (“निर्वासन (बन्धुआई)” नामक लेख पढ़े, परन्तु ऐसा नहीं हुआ, और यहूदा के लोगों पर बहुत से शक्तिशाली राज्यों ने राज्य किया (पहले फारसियों ने, बाद में यूनानी और रोमियों ने)। 

यहूदी राज्य का आरम्भ करने का एक प्रयास मक्काबियों (ई. पू. 68-63) की अगुआई में किया गया, जो कुछ हद तक सफल भी रहा, परन्तु लम्बे समय तक नहीं चला।
जो यहूदी बंधुआई से लौटे थे, वे फरिसियों की धार्मिक शिक्षा से परिचित हो चुके थे। फरिसियों ने यह सिखाया कि बुराई मात्र मानव की असफलताओं और स्वार्थीपन का परिणाम नहीं है, अपितु अच्छाई और बुराई के बीच कभी न खत्म होनेवाला वाला संघर्ष भी इसका कारण है। 

इस के साथ ही साथ उनका यह भी विश्वास था कि इस संसार में जितनी भी दुष्टता है, वह शैतानी शक्तियों के कारण है जिनका सरदार शैतान जो की सभी दुष्ट शक्तियों का प्रधान है। (इब्रानी में, इस प्रधान को “शैतान” कहा गया है। “शैतान” नामक लेख पढ़ें)। 

फारसी इस बात में भी विश्वास करते थे कि भली शक्तियाँ अन्त में दुष्टता की शक्तियों को हरा देंगी। यह विश्वास यहूदी पवित्रशास्त्र के लेखों में भी प्रगट होता है (जक 3:1-12) तथा पूरे नया-नियम में यह पाया जाता है (मर 1:12,13; 3:22-26; प्रेरि 26:12-18; इफि 6:10-13; प्रका 20:1-3)। “भविष्यसूचक लेख” नामक लेख पढ़ें। 

परमेश्वर के उद्देश्य मूसा की व्यवस्था में इस्राएलियों पर प्रगट किये गए थे। लोगों ने जिस प्रकार व्यवस्था का पालन किया परमेश्वर ने उसी रीति से उनका न्याय किया। विश्वासी लोगों को आज्ञाकारी होने का आह्वान करने के द्वारा यीशु ने परमेश्वर के उद्देश्य का पालन किया।  

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