व्यवस्था और अनुग्रह बाइबल के दो
प्रमुख सिद्धांत हैं जो परमेश्वर के चरित्र, न्याय,
और प्रेम को प्रकट करते हैं। यह विषय हमें यह समझने में मदद करता है
कि मूसा की व्यवस्था क्यों दी गई, अनुग्रह कैसे कार्य करता
है, और मसीही जीवन में इन दोनों का क्या स्थान है।
2. व्यवस्था क्या है?
(i) व्यवस्था की परिभाषा
- परमेश्वर की नैतिक, धार्मिक, और नागरिक शिक्षाएँ जिन्हें मूसा के
द्वारा इस्राएलियों को दिया गया। (निर्गमन 20:1-17)
- व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य पवित्रता और परमेश्वर की
आज्ञाकारिता को बनाए रखना था।
(ii) व्यवस्था के प्रकार
- नैतिक व्यवस्था (Moral
Law): दस आज्ञाएँ और
नैतिक सिद्धांत। (निर्गमन 20:1-17)
- धार्मिक व्यवस्था (Ceremonial
Law): बलिदान और उपासना
पद्धति। (लैव्यव्यवस्था 1-7)
- नागरिक व्यवस्था (Civil
Law): समाज और न्याय से
संबंधित विधियाँ। (व्यवस्थाविवरण 19:1-21)
(iii) व्यवस्था का उद्देश्य
- पाप को प्रकट करना और यह दिखाना कि मनुष्य परमेश्वर की
धार्मिकता तक नहीं पहुँच सकता। (रोमियों 3:20)
- लोगों को मसीह की ओर इंगित करना। (गलातियों 3:24)
- व्यवस्था ने पाप के लिए न्याय और दंड को स्थापित किया। (व्यवस्थाविवरण
28:15-68)
3. अनुग्रह क्या है?
(i) अनुग्रह की परिभाषा
- अनुग्रह का अर्थ है बिना किसी योग्यता के परमेश्वर की ओर
से दिया गया उद्धार। (इफिसियों 2:8-9)
- यह परमेश्वर की वह भलाई है जो यीशु मसीह के बलिदान के
द्वारा हमें दी गई है। (यूहन्ना 1:17)
(ii) अनुग्रह का कार्य
- पापों की क्षमा:
मसीह के लहू से उद्धार। (1 यूहन्ना 1:9)
- नया जीवन: विश्वासियों
को नया हृदय और पवित्र आत्मा दी जाती है। (यहेजकेल 36:26-27)
- अनंत जीवन की प्रतिज्ञा:
उद्धार केवल अनुग्रह द्वारा मिलता है, न कि कर्मों द्वारा। (रोमियों 6:23)
4. व्यवस्था और अनुग्रह में अंतर
व्यवस्था |
अनुग्रह |
मूसा के द्वारा दी गई (यूहन्ना 1:17) |
यीशु मसीह के द्वारा लाई गई (यूहन्ना 1:17) |
पाप को दिखाती है (रोमियों 3:20) |
पापों को क्षमा करती है (इफिसियों 1:7) |
मृत्यु का कारण बनती है (2 कुरिन्थियों 3:6) |
अनंत जीवन प्रदान करती है (रोमियों 6:23) |
दंड और न्याय लाती है (व्यवस्थाविवरण 28:15-68) |
क्षमा और उद्धार लाता है (रोमियों 8:1-2) |
मनुष्य की कमजोरी को प्रकट करती है (रोमियों 7:7) |
पवित्र आत्मा के द्वारा शक्ति प्रदान करती है (रोमियों 8:3-4) |
5. मसीही जीवन में व्यवस्था और अनुग्रह का स्थान
(i) क्या मसीही विश्वासी को व्यवस्था का पालन करना चाहिए?
- नैतिक व्यवस्था (दस आज्ञाएँ) आज भी लागू है। (मत्ती 5:17-18)
- धार्मिक और नागरिक व्यवस्था मसीह में पूरी हो गई है। (कुलुस्सियों
2:14)
- उद्धार कर्मों से नहीं, बल्कि अनुग्रह से होता है। (इफिसियों 2:8-9)
(ii) अनुग्रह में जीवन कैसे जिएं?
- विश्वास द्वारा उद्धार प्राप्त करें।
(यूहन्ना 3:16)
- पवित्र आत्मा के नेतृत्व में चलें।
(गलातियों 5:16)
- प्रेम और भलाई में बढ़ें।
(मत्ती 22:37-40)
6. सामान्य प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1:
व्यवस्था का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
व्यवस्था पाप को प्रकट करने और हमें मसीह की ओर लाने के लिए दी गई थी। (गलातियों
3:24)
प्रश्न 2:
क्या मसीह ने व्यवस्था को समाप्त कर दिया?
उत्तर:
नहीं, मसीह ने व्यवस्था को पूरा किया, लेकिन हमें अब अनुग्रह में जीने के लिए बुलाया गया है। (मत्ती 5:17)
प्रश्न 3:
अनुग्रह से उद्धार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
उद्धार कर्मों से नहीं, बल्कि परमेश्वर के
अनुग्रह द्वारा विश्वास से प्राप्त होता है। (इफिसियों 2:8-9)
प्रश्न 4:
क्या अनुग्रह का अर्थ यह है कि हम जैसा चाहें वैसा जीवन जी सकते हैं?
उत्तर:
नहीं, अनुग्रह हमें पवित्रता में बढ़ने के लिए
बुलाता है। (रोमियों 6:1-2)
प्रश्न 5:
क्या हमें आज भी दस आज्ञाओं का पालन करना चाहिए?
उत्तर:
हाँ, क्योंकि यह नैतिक व्यवस्था है और यीशु ने इसे
बनाए रखा। (मत्ती 22:37-40)
7. निष्कर्ष
व्यवस्था और अनुग्रह बाइबल की
महत्वपूर्ण शिक्षाएँ हैं। व्यवस्था पाप को प्रकट करती है,
जबकि अनुग्रह उद्धार प्रदान करता है। मसीही जीवन में हमें परमेश्वर
के अनुग्रह में जीना चाहिए, लेकिन नैतिकता और पवित्रता को
बनाए रखना भी आवश्यक है। हमारा उद्धार केवल मसीह में विश्वास के द्वारा है,
न कि कर्मों के द्वारा, और हमें पवित्र आत्मा
के मार्गदर्शन में धार्मिकता में बढ़ना चाहिए।