अध्याय की झलक:
यह अध्याय न्याय और गवाही के बीच संतुलन को दर्शाता है। परमेश्वर दो विशेष गवाहों को उठाता है जो संसार को पश्चाताप का संदेश देते हैं। फिर सातवीं तुरही बजाई जाती है और परमेश्वर के राज्य की घोषणा होती है।
1-2 पद: मंदिर का नापना
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: परमेश्वर अपने लोगों की रक्षा करता है, लेकिन उन्हें समय के लिए परीक्षण भी सहना पड़ता है।
3-6 पद: दो गवाह
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: परमेश्वर कठिन समय में भी सच्चाई के गवाहों को खड़ा करता है।
7-10 पद: गवाहों की मृत्यु
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: सत्य बोलने वालों का संसार में विरोध होता है, पर परमेश्वर की योजना उनमें भी कार्य करती है।
11-14 पद: पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: परमेश्वर के गवाह अंतिम विजय पाते हैं चाहे संसार उन्हें अस्थायी रूप से पराजित कर दे।
15-19 पद: सातवीं तुरही और परमेश्वर का राज्य
प्रतीक और उनके अर्थ:
सीख: अंततः परमेश्वर का राज्य प्रकट होगा, और उसके न्याय व दया दोनों का प्रकट रूप होगा।
इस अध्याय से क्या सिखें?
गवाही देना कठिन हो सकता है लेकिन अंतिम विजय परमेश्वर की होगी।
परमेश्वर अपने सेवकों को न्याय के समय ऊँचा उठाता है।
दुनिया चाहे विरोध करे, अंततः प्रभु यीशु का राज्य स्थापन होगा।
परमेश्वर अपने वचन और वचनों के प्रति सच्चा है।
याद रखने योग्य वचन:
“इस संसार का राज्य अब हमारे प्रभु और उसके मसीह का राज्य बन गया है, और वह युगानुयुग राज्य करेगा।”
(प्रकाशित वाक्य 11:15)

