अध्याय की झलक: यह अध्याय न्याय और गवाही के बीच संतुलन को दर्शाता है। परमेश्वर दो विशेष गवाहों को उठाता है जो संसार को पश्चाताप का संदेश देते हैं। फिर सातवीं तुरही बजाई जाती है और परमेश्वर के राज्य की घोषणा होती है।
1-2 पद: मंदिर का नापना
यूहन्ना को एक नपने की छड़ी दी जाती है और कहा जाता है कि वह परमेश्वर के मंदिर, वेदी और वहाँ उपासना करने वालों को नापे।
लेकिन बाहरी आँगन को न नापना — वह अन्यजातियों को दे दिया गया है, और वे पवित्र नगर को 42 महीने तक रौंदेंगे।
प्रतीक और उनके अर्थ:
नपने की छड़ी — परमेश्वर का मापन, जाँच और संरक्षण।
मंदिर — परमेश्वर की उपस्थिति का स्थान, या आत्मिक रूप से विश्वासी समुदाय।
बाहरी आँगन — अविश्वासी दुनिया या सताए गए विश्वासी।
42 महीने (3½ साल) — कष्ट का एक निश्चित समय (1260 दिन भी कहा जाता है)।
सीख: परमेश्वर अपने लोगों की रक्षा करता है, लेकिन उन्हें समय के लिए परीक्षण भी सहना पड़ता है।
3-6 पद: दो गवाह
परमेश्वर दो गवाहों को 1260 दिनों तक भविष्यवाणी करने के लिए भेजता है।
वे टाट वस्त्र पहनते हैं (शोक और पश्चाताप का प्रतीक)।
वे दो जैतून के पेड़ और दो दीवट (दीपक) कहलाते हैं जो पृथ्वी के स्वामी के सामने खड़े हैं।
यदि कोई उन्हें हानि पहुँचाना चाहता है, तो उनके मुँह से आग निकलती है।
उनके पास आकाश को बन्द करने (बारिश रोकने), जल को रक्त में बदलने, और पृथ्वी पर हर प्रकार की विपत्तियाँ डालने की शक्ति है।
प्रतीक और उनके अर्थ:
दो गवाह — परमेश्वर के सत्य के प्रतिनिधि; इन्हें मूसा और एलिय्याह के समान समझा जाता है।
जैतून के पेड़ — आत्मा से भरे हुए जीवन।
दीवट — प्रकाश और सच्चाई का प्रचार।
आग निकलना — परमेश्वर की न्यायकारी शक्ति।
विपत्तियाँ लाना — उनकी गवाही को अनदेखा करने पर दंड।
सीख: परमेश्वर कठिन समय में भी सच्चाई के गवाहों को खड़ा करता है।
7-10 पद: गवाहों की मृत्यु
जब उनका गवाही का काम पूरा हो जाएगा, तो “गड्ढे से निकलने वाला पशु” उनसे युद्ध करेगा और उन्हें मार डालेगा।
उनकी लाशें महान नगर (जो आत्मिक रूप से सदोम और मिस्र कहलाता है — अर्थात् पाप और दासत्व का प्रतीक) की सड़कों पर पड़ी रहेंगी।
लोग उनकी मृत्यु पर खुशियाँ मनाएँगे और उपहार भेजेंगे।
प्रतीक और उनके अर्थ:
गड्ढे से निकलने वाला पशु — शैतानी शक्तियाँ।
महान नगर — भ्रष्ट मानव सभ्यता (येरूशलेम का भी एक चित्रात्मक अर्थ)।
लाशों पर आनंद — मनुष्यता की कठोरता और परमेश्वर-विरोधी भावना।
सीख: सत्य बोलने वालों का संसार में विरोध होता है, पर परमेश्वर की योजना उनमें भी कार्य करती है।
11-14 पद: पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण
तीन दिन ढाई रात बाद परमेश्वर की आत्मा गवाहों में प्रवेश करती है और वे जीवित हो उठते हैं।
वे स्वर्ग में ऊपर चढ़ाए जाते हैं, और उनके शत्रु भयभीत होते हैं।
उसी समय एक बड़ा भूकंप आता है, जिससे नगर का दसवाँ भाग गिर पड़ता है और 7000 लोग मर जाते हैं।
प्रतीक और उनके अर्थ:
तीन दिन ढाई रात — मसीह के पुनरुत्थान का प्रतिबिंब।
स्वर्गारोहण — परमेश्वर का अंतिम विजय और सम्मान।
भूकंप — न्याय और परिवर्तन का समय।
सीख: परमेश्वर के गवाह अंतिम विजय पाते हैं चाहे संसार उन्हें अस्थायी रूप से पराजित कर दे।
15-19 पद: सातवीं तुरही और परमेश्वर का राज्य
सातवाँ स्वर्गदूत तुरही फूँकता है, और स्वर्ग में आवाजें गूंजती हैं:
“इस संसार का राज्य अब हमारे प्रभु और उसके मसीह का राज्य बन गया है।”
24 प्राचीन अपने सिंहासनों से गिरकर परमेश्वर की आराधना करते हैं।
वे कहते हैं कि अब परमेश्वर ने न्याय करने और अपने दासों को प्रतिफल देने का समय ला दिया है।
फिर स्वर्ग में परमेश्वर का मंदिर खुलता है, और वाचा का संदूक दिखता है।
बिजली, आवाजें, गर्जन, भूकंप और भारी ओलावृष्टि होती है।
प्रतीक और उनके अर्थ:
सातवीं तुरही — अंतिम घोषणा; मसीह का राज्य स्थापन।
24 प्राचीन — विश्वासी समुदाय के प्रतिनिधि।
वाचा का संदूक — परमेश्वर की वाचा और विश्वासयोग्यता का प्रतीक।
गर्जन और भूकंप — न्याय का समय।
सीख: अंततः परमेश्वर का राज्य प्रकट होगा, और उसके न्याय व दया दोनों का प्रकट रूप होगा।
इस अध्याय से क्या सिखें? गवाही देना कठिन हो सकता है लेकिन अंतिम विजय परमेश्वर की होगी। परमेश्वर अपने सेवकों को न्याय के समय ऊँचा उठाता है। दुनिया चाहे विरोध करे, अंततः प्रभु यीशु का राज्य स्थापन होगा। परमेश्वर अपने वचन और वचनों के प्रति सच्चा है।
याद रखने योग्य वचन: “इस संसार का राज्य अब हमारे प्रभु और उसके मसीह का राज्य बन गया है, और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (प्रकाशित वाक्य 11:15)