उत्पत्ति, जिसका अर्थ है “शुरुआत” यह बाइबिल की पहली पुस्तक है और पेंटाटूक (बाइबल की प्रथम 5 पुस्तकों का संग्रह)में प्रथम किताब है।
उत्पत्ति शब्द का अर्थ है “आरम्भ””। और यह पुस्तक आरम्भ की बातों से सम्बन्धित है — संसार का आरम्भ, मनुष्य जाति का आरम्भ, और इस्राएली लोगों का आरम्भ। उत्पत्ति विश्वास की भी पुस्तक है, जिसका अर्थ है कि यह, इस बात से सम्बन्धित है कि परमेश्वर कौन है और परमेश्वर कैसे सृष्टि के आरम्भ से लोगों के जीवनों से जुड़ा हुआ है।
इस्राएल के आरम्भिक पूर्वजों ने अपने परिवार का इतिहास किसी लेखन सामग्री से नहीं, परन्तु मौखिक रूप से लिखा था। ये विवरण मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते रहे। अन्ततः ये विवरण लिखे गए ताकि इस्राएली लोगों के पास इन बातों का वृत्तान्त हों कि परमेश्वर ने कैसे इस संसार की सृष्टि की और कैसे वे लोग परमेश्वर के लोग बन गए। यह पुस्तक इस बात का विवरण; भी प्रस्तुत करती है कि कैसे प्रथम मनुष्य ने अदन के बगीचे में परमेश्वर के साथ अपने पवित्र आदर्श सम्बन्ध को तोड़ लिया था।
परन्तु परमेश्वर ने मनुष्य जाति को त्याग नहीं दिया और अन्त में अब्राम और सारै (बाद में उन्हें अब्राहम और सारा नाम दिया) को चुन लिया, ताकि वे उत्तरी मेसोपोटामिया स्थित अपने घर को छोड़कर कनान देश चले जाएँ, वह देश जिसे देने की परमेश्वर ने अब्राम और उसके वंशंजों से प्रतिज्ञा की थी। परमेश्वर ने अब्राम से यह भी प्रतिज्ञा की थी कि उसका वंश एक महान् जाति बन जाएगा, जो संसार के अन्य सभी देशों और जातियों तक परमेश्वर की आशीष को पहुँचाएगा (१2:1-3)।
उत्पत्ति में कई वंशावलियाँ दी गईं हैं जो यह स्पष्ट करती हैं कि इस्राएली लोग कैसें आपस में एक दूंसरे के साथ और प्राचीन पश्चिमी एशिया, अरब देशों, और उत्तर-पूर्वी अफ्रीका के लोगों, से सम्बन्धित हैं।
पारम्परिक रूप से मूसा को पहली पाँच पुस्तकों; जिसमें उत्पत्ति की पुस्तक भी सम्मिलित है, के लेखक के रूप में देखा जाता है। निश्चित रूप से यह कहना कठिन है कि मूसा कब हुआ था; परन्तु बाइबल (। राजा 6:4) और अन्य प्राचीन अभिलेख यह संकेत देते हैं कि वह ई. पू. 400 से 250 के बीच किसी समय में हुआ-था । यह तथ्य उत्पत्ति को 3300 वर्ष से अधिक प्राचीन बताता है। पिछली दो-शताब्वदियों से बाइबल के कुछ विद्वानों का यह,मत रहा है कि उत्पत्ति की, पुस्तक अपने वर्तमात्त स्वरूप में काफ़ी बाद में आई, सम्भवतः इस्राएलियों के बेबीलोन की बँधुआई में जाने के समय (ई- पू. 587-538) ।
उन्होंने ध्यान दिया कि परमेश्वर द्वारा की गई सृष्टि रचना के दो विवरणों (उत्प 1:1-2:4 और 2:4-25) में थोड़ा-सा अन्तर है। और दोनों स्थानों पर परमेश्वर के भिन्न नामों का प्रयोग हुआ है। इसलिये उन्होंने सोचा कि हो सकता है यह पुस्तक अलग-अलग लेखों का संकलन हो, जिनमें से प्रत्येक में इस्राएल के प्रारम्भिक पूर्वजों के “पारिवारिक विवरण” की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ और इतिहास निहित हों। इस पुस्तक का लेखक कोई भी हो; पर इसका संदेश स्पष्ट है : अब्राहम, सारा, ओर उनके बंशजों (इस्राएली लोगों) का परमेश्वर ही इस संसार का सृष्टिकर्ता हैं और सारी मनुष्य जाती का उद्धार करने के लिए कार्यरत हैं।
उत्पत्ति को दो मुख्य भागों में बॉटा जा सकता है : अध्याय 1 -11 में संसार की सृष्टि, और गम के पूर्वजों के विषय में बताया गया है, प्रलय, तथा विभिन्न भाषाओं की उत्पत्ति का विवरण मिलता है; अध्याय 12-50 में इस्राएली के परिवार का मिस्र में बसने के विवरण जिसका आरम्भ अब्राहम और सारा की साहसिक यात्राओं से होता है और अन्त उनके पौत्र याक्रूब से होता है। इस पुस्तक की रूप-रेखा निम्न प्रकार से है:
मनुष्य के इतिहास का आरम्भ (1:7-11:25)
परमेश्वर की प्रजा, इस्राएल का आरम्भ (11:26-50:26)
अभ्यास प्रश्नोत्तरी