भजन संहिता जोकि बाइबल की सबसे लंबी पुस्तक है जिसमें 150 अध्याय हैँ। इसका नाम एक यूनानी शब्द से आता है जिसका अर्थ है वाद्य यंत्रों के साथ गया जाने वाले भजन या आराधना गीत।
इस पुस्तक में विभिन्न लेखकों द्वारा लिखे गये भजन हैँ। भजन संहिता को मुख्य तौर पर 5 भागों में बाँट कर देखा जाता है भजन 3-41, 42-72, 73-89, 90-106, और 107-145 इस विभाजन के कारण है इनके अंत में आने वाले वचन जैसे “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा आदि से अनन्तकाल तक धन्य है आमीन, फिर आमीन॥” भजन संहिता 41:13
जैसा समझा जाता है इस पुस्तक के सभी भजन दाऊद ने नहीं लिखे हैँ। दाऊद के द्वारा लिखे गए भजनों की संख्या 73 है जिनमे दाऊद की लेखन शैली व पहचान साफ देखी जा सकती है। दाऊद के पुत्र सुलेमान ने दो भजन, 72 और 127 लिखे हैँ। भजन 90 मूसा के द्वारा लिखा गया है। अन्य 12 भजन (50, 73-83) आसफ के द्वारा लिखे गए हैँ। कोरह के पुत्रों ने 11 भजन (42, 44-49) लिखे हैँ। भजन 88 हेमान ने लिखा है। अन्य 50 भजन ऐसे हैँ जिनके लेखक कौन है ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।
सुलेमान और मूसा को छोड़कर अन्य सभी याजक या लेवी थे जिनका काम था दाऊद के राज्य के दौरान आराधना करना और कराना। भजन की पुस्तक जैसा की हमने पढ़ा लंबे समय के दौरान लिखी गई है जिसमें विभिन्न समयों लिखे गए भजन सम्मिलित हैँ। भजन 90 मूसा के द्वारा लिखा गया है और अन्य भजन दाऊद व अन्य लेखों के द्वारा लिखे गए जिस से समय अंतराल का पता चलता है। भजन 137 जोकि एक शोक गीत है संभवतः उस समय लिखा गया जब यहूदी बेबीलोन की बंधुआई में पड़े थे जोकि लगभग 586 से 538 ई.पु. का समय था। बंधुआई से बाहर आने के बाद इस ही समय में सभी भजनों एक पुस्तक के रूप में एक साथ लाया गया था।
भजन संहिता अपने भजनों में विभिन्न विषयों को छूती है जैसे पाप, दया, युद्ध, सुरक्षा, न्याय, मसीहा का आगमन, आराधना आदि। इस प्रकार विभिन्न विषयों को समाहित करने वाली यह बाइबल की अकेली पुस्तक है।
भजन संहिता आराधकों व आराधना के लिए सबसे महत्व पूर्ण पुस्तक है। इसको समझने के लिए बहुत गहन अध्ययन की आवश्यकता नहीं पड़ती और न ही बहुत पढ़ा लिखा होने की आवश्यकता है। एक भक्ति पूर्ण मन और साफ दिल से इस पुस्तक को पढ़ने पर हम सीधा परमेश्वर से संबंध जोड़ पाते हैँ। इस पुस्तक का लगातार अध्ययन हमारे आध्यात्मिक जीवन में बहुत उन्नति करता है और हमारी प्रार्थनाओं में अत्यधिक प्रभाव ला सकता है यदि हम इसकी आयतों व भजनों को अपनी प्रार्थनाओं में प्रयोग करें।