1. परिचय (Introduction)
- नाम और अर्थ: हिब्रानी में इसे “वयिक्रा” (וַיִּקְרָא) कहा गया है जिसका अर्थ है – “और उसने बुलाया” (पहले पद से लिया गया)। ग्रीक नाम Levitikon से Leviticus आया, जिसका अर्थ है “लैवी से संबंधित”।
- लेखक: मूसा (लैव्यव्यवस्था 1:1; 7:38; 27:34)।
- समय और स्थान: लगभग 1445 ई.पू.। यह पुस्तक सीनै पर्वत के नीचे मंदिर (Tabernacle) में दी गई।
- प्राप्तकर्ता: इस्राएल की प्रजा।
- उद्देश्य: परमेश्वर ने अपने लोगों को बुलाकर सिखाया कि पवित्र परमेश्वर के साथ कैसे संबंध रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
- निर्गमन में इस्राएल मिस्र से छुड़ाया गया और परमेश्वर का मंदिर उनके बीच स्थापित हुआ।
- अब परमेश्वर अपनी प्रजा को पवित्र जीवन और उपासना के नियम देता है।
- यह पुस्तक इस्राएल को “पवित्र जाति” और याजकीय राष्ट्र के रूप में प्रशिक्षित करती है।
3. संरचना (Outline / Structure)
- बलिदानों के नियम (Ch. 1-7)
- होमबलि, अन्नबलि, मेलबलि, पापबलि, अपराधबलि।
- याजकों का अभिषेक और सेवा (Ch. 8-10)
- हारून और उसके पुत्रों का अभिषेक।
- पवित्रता और शुद्धता के नियम (Ch. 11-15)
- भोजन के नियम, अशुद्धि और शुद्धिकरण।
- प्रायश्चित्त का दिन (Ch. 16)
- साल में एक दिन महायाजक का लहू लेकर परमेश्वर के सामने प्रवेश करना।
- पवित्र जीवन के नियम (Ch. 17-26)
- नैतिक नियम, सामाजिक नियम, त्योहार, याजकों की पवित्रता, आशीष और श्राप।
- प्रतिज्ञा और दशमांश (Ch. 27)
4. मुख्य विषय (Major Themes)
- परमेश्वर की पवित्रता: “पवित्र बनो क्योंकि मैं पवित्र हूँ।” (लैव्य. 11:44; 19:2; 20:26)
- उद्धार लहू के द्वारा: बलिदान प्रणाली इस सत्य को दर्शाती है कि “लहू के बिना क्षमा नहीं” (इब्रानियों 9:22)।
- याजकत्व: हारून और उसके वंशज याजक के रूप में नियुक्त।
- प्रायश्चित्त और मेल-मिलाप: प्रायश्चित्त का दिन (Ch. 16) यीशु मसीह की पूर्ण बलि का चित्रण।
- यीशु मसीह का प्रतिबिंब:
- होमबलि → मसीह का सम्पूर्ण समर्पण।
- मेलबलि → मसीह के द्वारा मेल-मिलाप।
- पाप और अपराध बलि → मसीह हमारे पापों का प्रायश्चित्त।
- महायाजक → यीशु हमारा सदा का महायाजक (इब्रानियों 4:14-16)।
5. महत्वपूर्ण पद (Key Verses)
- लैव्यव्यवस्था 11:44 – “पवित्र बनो क्योंकि मैं पवित्र हूँ।”
- लैव्यव्यवस्था 17:11 – “क्योंकि प्राणी का जीवन लहू में है… और लहू ही प्राण के लिए प्रायश्चित्त करता है।”
- लैव्यव्यवस्था 19:2 – “सारी इस्राएल सभा से कह, तुम पवित्र बनो।”
6. प्रमुख शिक्षाएँ (Key Doctrinal Teachings)
- परमेश्वर पवित्र है और उसके लोग भी पवित्र जीवन जियें।
- बलिदान प्रणाली मसीह के क्रूस की छाया है।
- लहू का महत्व उद्धार और प्रायश्चित्त का केंद्र है।
- उपासना केवल परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार ही स्वीकार्य है।
- पवित्रता व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन के हर क्षेत्र में अपेक्षित है।
7. विशेषताएँ (Unique Features)
- बलिदानों और याजकत्व की सबसे विस्तृत शिक्षा।
- प्रायश्चित्त का दिन (Yom Kippur) – पूरी बाइबल में सबसे पवित्र दिन।
- यह पुस्तक बार-बार “पवित्र” शब्द को दोहराती है (90 से अधिक बार)।
- पवित्रता का केंद्र परमेश्वर की उपस्थिति है।
8. व्यावहारिक अनुप्रयोग (Practical Applications)
- मसीही विश्वासियों को भी बुलाहट मिली है – “तुम पवित्र बनो।” (1 पतरस 1:15-16)
- हमें हर क्षेत्र में (भोजन, आचरण, उपासना) पवित्रता का पालन करना चाहिए।
- बलिदान प्रणाली हमें यीशु मसीह की याद दिलाती है – वही पूर्ण बलिदान है।
- परमेश्वर का डर और उसकी आज्ञाकारिता सच्चे विश्वास का प्रमाण है।
9. सारांश (Summary)
लैव्यव्यवस्था परमेश्वर की पवित्रता और उसकी प्रजा से अपेक्षित पवित्र जीवन का नियम-पुस्तक है। बलिदान, याजकत्व, प्रायश्चित्त और त्योहार – सब मसीह की ओर इशारा करते हैं। इस पुस्तक का केंद्रीय संदेश है कि परमेश्वर पवित्र है और उसकी प्रजा को भी पवित्र होना चाहिए।