रामायण की 5 ऐसी अजीब कहानियां जो रामायण को काल्पनिक साबित करती हैं
वाल्मीकि रामायण जोकि एक हिन्दू ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में हिन्दू देवता राम के जीवन और शिक्षाओं का पूरा विवरण मिलता है। हिंदूवादी इस ग्रन्थ में वर्णित घटनाओं और विवरण को ऐतिहासिक बताते हैं। यानि उनके अनुसार रामायण वास्तव में घटित हुई एक घटना है जिसके वे कई सबूत भी दिखाते हैं।
इस लेख में हम आपको ऐसे सबूत और तर्क देंगे जिस से यह साबित हो जायेगा की राम एक ऐतिहासिक और वास्तविक किरदार नहीं बल्कि एक काल्पनिक कहानी है।
राम” एक काल्प्निक पात्र थे, पुरातत्व विभाग द्वारा कई वर्षो के शोध के बाद 2008 मे ये सिद्ध हुआ के रामसेतू 18 लाख वर्ष पूर्व “Tectonic Plates” के घर्षण द्वारा उत्पन्न हुआ, जो समुद्र तल तक गड़ा हुआ है| जबकि मानव जाति के जन्मे हुए अभी 1 लाख वर्ष भी नही हुए, करोङो वर्षो पूर्व के डायनासौर्स (Dianasaurs) के अवशेष भी मिल गये मगर वानर सेना का कोई अता पता नही | इस प्रकार के सेतू जापान – कोरिया के बीच मे भी है, और इससे कई गुना बड़ा सेतु तुर्की द्वीप मे भी है|
राम सेतु (Adams Bridge) इसे अधिक पुराना होने के कारन आदम पुल भी कहाँ जाता है । राम सेतु (Adams Bridge) पर नासा ने रिसर्च कर बताया कि यह पुल प्रकृति निर्मित है, मानव निर्मित नही । यह समुद्र में पाये जाने वाले मूँगा (Coral) में पाये जाने वाले केल्शियम कार्बोनेट के छोड़े जाने से निर्मित श्रंखला है । जिसकी लंबाई 30 Km. है। नासा ने इसके सैम्पल लेकर रेडियो कार्बन परिक्षण से बताया कि यह सेतु 17.5 लाख वर्ष पुराना है । मूंगा (Coral) समुद्र के कम गहरे पानी में जमा होकर श्रंखला बनाते है। विश्व में मूँगा से निर्मित ऐसी 10 श्रृंखलाएँ है इनमे से सबसे बड़ी ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर है । इसकी लंबाई रामसेतु से भी कई गुणा अधिक 2500 Km है। विश्व की इन सभी 10 मूँगा श्रंखलाओ को सेटेलाईट के द्वारा देखा जा चूका है। नासा के रिसर्च अनुसार रामसेतु जब 17.5 लाख वर्ष पुराना है, तो इसे राम निर्मित कैसे कहाँ जा सकता है। जबकि मानव ने खेती करना/कपडे पहनना 8000 हजार वर्ष ईसा पूर्व सीखा है । मानव ने लोहा (Iron) की खोज 1500 ईसा पूर्व की है। मानव ने लिखना 1300 ईसा पूर्व सीखा है। फिर राम नाम लिखकर दुनियाँ के पहले पशु सिविल इंजनियर भालू नल-नील ने इसे कैसे बना डाला?
काल्पनिक है रामायण और झूठ है रामसेतु की कहानी
गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल मे कभी भी राम का उल्लेख नही किया, या उनके दौर मे राम का अस्तित्व ही नही रहा। पर राम ने अपने मुँह से बुद्ध का नाम लिया है, मतलब राम के समय मे बुद्ध का अस्तित्व था। हिंदूवादी बड़ी चालाकी से हमेशा एक साजिश करते हैं, हिंदूवादियों को यह पता है कि भारत मे नई चीजों की अपेक्षा प्राचीन चीजों का अधिक महत्व है, इसीलिये जब कभी भी कोई बड़ा मन्दिर बनता है तो यह कहकर प्रचारित करते हैं कि यह मन्दिर बहुत पुराना है। द्वापरयुग मे यहाँ पाण्डवों ने पूजा की थी। हर मन्दिर से इसी तरह की झूठी कहानियाँ जोड़ दी जाती है, ताकि उस मन्दिर का महत्व बढ़ जाये और वहाँ चढ़ावे मे कमी ना आये।
वाल्मिकी रामायण’ मे ऐसे कईं श्लोक हैं, जो बुद्ध और बौद्ध धर्म के खिलाफ लिखे गये है। वाल्मीकि रामायण के ये श्लोक, इस तथ्य की स्पष्ट पुष्टि करतें है, कि रामायण, गौतम बुद्ध और ‘बौद्ध धम्म’ के बाद लिखी गयी है। यहीं नहीं रामायण की बहुत सारी बातें तो इसके ‘सम्राट अशोक’ से भी बाद लिखे जाने की पुष्टि करती है।
ऐसे ही कुछ श्लोक जो ‘आयोध्या-कांड’ में आये है । यहाँ पर लेखक ने ‘बुद्ध’ और ‘बौद्ध-धम्म’ को नीचा दिखाने के फेर में ‘तथागत-बुद्ध’ को स्पष्ट ही श्लोकबद्ध (सम्बोधन) करते हुए, राम के मुँह से चोर, धर्मच्युत नास्तिक और कईं अपमानजनक शब्दों से संबोधित करवा दिया हैं।
यहाँ कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहैं हैं , जिनकी पुष्टि आप ‘वाल्मिकी रामायण से कर सकते हैं :-
उग्र तेज वाले नृपनंदन श्रीरामचंद्र, जावाली के नास्तिकता से भरे वचन सुनकर उनको सहन न कर सके और उनके वचनों की निंदा करते हुए उनसे फिर बोले :-
“निन्दाम्यहं कर्म पितुः कृतं , तद्धस्तवामगृह्वाद्विप मस्थबुद्धिम्।
बुद्धयाऽनयैवंविधया चरन्त , सुनास्तिकं धर्मपथादपेतम्।।”
– अयोध्याकाण्ड, सर्ग – 109. श्लोक : 33।।
सरलार्थ :- हे जावाली! मैं अपने पिता (दशरथ) के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा। क्योंकि ‘बुद्ध’ जैसे नास्तिक मार्गी , जो दूसरों को उपदेश देते हुए घूमा-फिरा करते हैं , वे केवल घोर नास्तिक ही नहीं, प्रत्युत धर्ममार्ग से च्युत भी हैं ।
“यथा हि चोरः स, तथा ही बुद्ध स्तथागतं।
नास्तिक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम्
स नास्तिकेनाभिमुखो बुद्धः स्यातम् ।।”
-(अयोध्याकांड, सर्ग -109, श्लोक: 34 / Page :1678 )
सरलार्थ :- जैसे चोर दंडनीय होता है, इसी प्रकार ‘तथागत बुद्ध’ और और उनके नास्तिक अनुयायी भी दंडनीय है । ‘तथागत'(बुद्ध) और ‘नास्तिक चार्वक’ को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए। इसलिए राजा को चाहिए कि प्रजा की भलाई के लिए ऐसें मनुष्यों को वहीं दण्ड दें, जो चोर को दिया जाता है।
परन्तु जो इनको दण्ड देने में असमर्थ या वश के बाहर हो, उन ‘नास्तिकों’ से समझदार और विद्वान ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे।
इससे साफ है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी ना कि बुद्ध से 2000 साल पहले।। .
नोट:-ये श्लोक ‘वाल्मिकि रामायण’ (मूल) से उद्घृत है।
इंसान अपने दिमाग से बहुत अच्छी कहानियां रच सकता है लेकिन उनमें हमेशा गलतियां होती हैं और गलतियों की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है. ऐसी ही गलती की रामायण और कृष्ण की कहानियां रचने वाले दिमागों यानि इंसानों ने. इन्होने गलती से कृष्णा का ज़िक्र वाल्मीकि रामायण में कर दिया जिस से ये साबित होता है की त्रेता और द्वापर युग नहीं बल्कि एक ही समय पर या थोड़े थोड़े अंतराल में ये दोनों कहानियां लिखी गयी हैं.
साथ ही ये भी साबित होता है की युग परिवर्तन बात भी मन घडन्त है. वैसे भी लाखों सालों में युग परिवर्तन की बात का कोई औचित्य नहीं है.